भैंसवामाता ट्रस्ट सचिव तहसीलदार सौरभ वर्मा ने बताया कि मंदिर की दान पेटी से 27 लाख 58 हजार रुपए की राशि निकली गई, जिसे बैंक में जमा की जा रही है। उक्त राशि नवरात्र के बाद 108 कुंडी महायज्ञ और श्रीराम कथा में पहुंचे श्रद्धालुओं, माता के दर्शन करने पहुंचे दर्शनार्थियों द्वारा दान पेटी में डाले गए थे।
तहसीलदार ने बताया कि नवरात्रि के दौरान लगभग 8 लाख की राशि रसीदों के माध्यम से प्राप्त हुई जो बैंक में जमा की जा चुकी वहीं, जो राशि दान से मिलती है उस राशि को मंदिर के विकास कार्यों में लगाई जाती है। इस अवसर पर आरआई रामबाबू देशवाली, पटवारी राधेश्याम भिलाला सहित ट्रस्ट सदस्य मौजूद रहे।
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दरबार में आते हैं पाती के लगन लिखाने
बताया जाता है कि माता के दरबार में लोग शुभ लगन के लिए आते हैं। किसी दूल्हे, दूल्हन का शादी का मुहूर्त नहीं निकल पाता हैं तो उसके लिए देव स्थान पर पाती लिखाई जाती है। इस पाती को देवी-देवता की स्वीकृति मानते हुए मुहूर्त के अलावा दिनों में शादी कर दी जाती है। पाती के लग्न लिखाने की परंपरा सारंगपुर क्षेत्र का सिद्धपीठ मां भैंसवा बिजासन माता माना जाता है। इस स्थान पर दूर दूर से लोग पाती लिखाने के लिए आते हैं। इस स्थान पर हर साल लगभग 2 हजार से ज्यादा लोग मां भैंसवा के दरबार में उपस्थित होकर पाती लिखाते हैं।
दुल्हन पक्ष की ओर से लिखाई जाती है पाती
पाती लिखाने का कार्य दुल्हन पक्ष की ओर से होता है, जहां माता के चरणों में दूल्हा-दुल्हन के पक्ष के लोगों द्वारा सहुलियत वाले दिन की चिट्ठी लिखकर रखी जाती है और उसे माताजी की अनुमति, सहमति मानकर पाती के साथ दुल्हन पक्ष नारियल के साथ दुल्हे के कपड़े, जूते और हैसियत के मुताबिक उपहार लेकर दुल्हे के घर पहुंचाते है। पाती के बाद जो दिन तय होता है उसे शुभ मुहूर्त माना जाता है।
पाती पहुंचते ही दूल्हे को लग जाती है हल्दी
पाती को लेकर एक परंपरा यह भी है कि जिस दिन दुल्हन पक्ष की ओर से यह पाती दूल्हे पक्ष को पहुंचती है, उसी दिन से दूल्हे को हल्दी लगाना प्रारंभ कर दिया जाता है।