मान्यता है कि विश्वकर्मा पूजा सूर्य की कन्या संक्रांति पर की जाती है। हर साल की भांति भगवान विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को होगी। रात 1:29 बजे सूर्य की कन्या संक्रांति का क्षण है। इस दिन राहुकाल शुक्रवार सुबह 10:43 से दोपहर 12:15 तक रहेगा।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार भगवान विश्वकर्मा की पूजन अर्चन करने से कारोबार में वृद्धि और व्यापार में तरक्की होती है। जिला उद्योग नगरी है, इसलिए देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा की पूजा को लेकर यहां खासा उत्साह है। विश्वकर्मा पूजा के दिन औजारों और निर्माण कार्य से जुड़ी मशीन दुकान कारखानों सहित औद्योगिक संस्थाएं व कंपनी में पूजा की जाती है।
मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा संसार के पहले इंजीनियर और वास्तुकार है। भगवान विश्वकर्मा ने ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सृष्टि का निर्माण किया था। शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्म का पुत्र कहा जाता है और स्वर्ग लोक, पुष्पक विमान, द्वारका नगरी, यमपुरी, कुबेर पुरी आदि का निर्माण किया था। इसके अलावा भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र और भगवान शिव के लिए त्रिशूल भी तैयार किया था।
भगवान विश्वकर्मा की इसी कुशलता के लिए मजदूर वर्ग के लिए यह दिन बेहद खास होता है। इस अवसर पर सभी कारखानों और औद्योगिक संस्थाओं में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की आराधना करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। व्यापार में तरक्की और लाभकारी होता है।
विश्वकर्मा जयंती पर विशेष
डॉ विनीत शर्मा ज्योतिषी एवं वास्तु शास्त्री ने बताया परिवर्तनी एकादशी पदमा एकादशी जलझूलनी एकादशी डोल ग्यारस और वामन जयंती के रूप में भी मनाई जाती है। मान्यता है, कि इस एकादशी का व्रत करने पर वाजपेई यज्ञ के बराबर के परिणाम मिलते हैं यह परिवर्तनी एकादशी इसलिए कहीं जाती है। क्योंकि इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु अपनी करवट को परिवर्तन करते हैं।
यह शुभ पर्व शुक्रवार श्रवण नक्षत्र अतिगंड योग विष्कुंभ और बव करण के संयोग में मनाया जाएगा। इस पदमा एकादशी या डोल ग्यारस त्यौहार परशुभ गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है, चंद्रमा और गुरु एक साथ मकर राशि में विद्यमान रहेंगे। शुभ भद्र योग शुभ मालव्य योग शुभ संयोग भी निर्मित हो रहे हैं। आज के दिन निराहार रहने का विधान है।