स्थानीय लोगों की मानें तो पहले यह मंदिर नीम वृक्ष के नीचे सिर्फ चबूतरानुमा था। मान्यता और प्रसिद्धी बढऩे के साथ यहां पर जन सहयोग से मंदिर का निर्माण कराया गया है। मंदिर का निर्माण भी देवी को अर्पित ईंटों से ही किया गया है।
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