दूरबीन में रील डालकर देखने का शौक था
मैंने सातवीं तक ही पढ़ाई की है। मुझे दूरबीन में रील डालकर देखने का शौक था। रील के लिए मैं शारदा टॉकीज जाता था। वहां प्रोजेक्टर चलाने वालों से दोस्ती हो गई और मुझे प्रोजेक्टर चलाने का काम मिल गया। इसी काम के लिए मुझे जयराम टॉकीज से बुलावा आने पर मैं वहां चला गया। चूंकि मैं एक्टर बनना चाहता था इसलिए ट्रेन से बिना टिकट मुंबई पहुंच गया। वहां कोई पहचान तो नहीं थी, भटकता रहा। एक व्यक्ति ने मुझे सहारा दिया। उसने मुझे नौकरी भी दिलाई। नाइट में चौकीदारी करता और दिन में अपने सपने के पीछे भागता। चूंकि मेरे मामा फोटोग्राफर थे तो मैं भी थोड़ा-बहुत कर लेता था। एक बड़े फोटोग्राफर चंदू भाई से मिला और उन्होंने मेरी ललक देखकर काम पर रख लिया। वे बॉलीवुड में काम करते थे। मैं भी उनके साथ शूटिंग में जाने लगा और वहां कैमरामैन से दोस्ती हो गई। एक दिन लैब में प्रोड्यूसर और सिनेमेटोग्राफर बी. गुप्ता से मुलाकात हुई। उन्होंने मुझे अपना असिस्टेंट रख लिया। हमने राजकुमार कोहली के प्रोडक्शन हाउस में भी काम किया।ऐसे बना कैमरामैन
अब तक मैं तीसरा असिस्टेंट कैमरामैन ही था। जीवनदाता की शूटिंग चल रही थी। मुंबई में तेज बारिश हो रही थी। इस वजह से असिस्टेंट आए नहीं। मेरा घर स्टूडियो के पास था इसलिए मैं पहुंच गया। पहली बार मुझे कैमरा पकड़ाया गया। इसके बाद धीरज कुमार की कंपनी क्रिएटिव आई का पहला असिस्टेंट बना।कई कलाकारों की फोटो खीचीं
शूटिंग के अलावा प्रीमियर शो में भी मैं फोटोग्राफी करता था। इसलिए मुझे कई कलाकारों का फोटो सेशन का मौका मिला। दीदार-ए- यार में रेखा, जितेंद्र, ऋषिकपूर की फोटोग्राफी की। इसके अलावा मैंने कई पंजाबी और आसामी फिल्में भी की।ये छत्तीसगढ़ी फिल्में की
तहुं दीवाना- महुं दीवानी, टूरी नं. वन, हीरो नं. वन, टेटकूराम, अजब-गजब जिंदगी, बंधना, मोही डारे रे, अपकमिंग प्रोजेक्ट- कुश्ती एक प्रेम कथा, स्टेशन वाली डॉर्लिंग