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‘पत्रिका’ ने पहले ही बताया कि छत्तीसगढ़ में पहली और दूसरी लहर में कुल संक्रमित रोगियों में 7-8 प्रतिशत बच्चे थे। अब आवश्यकता है इन्हें संक्रमण से बचाने की। ऑक्सीजन लेवल 90 से कम आता है उन्हें गंभीर निमोनिया, एक्यूट रिसपाइटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम, सैप्टिक शॉक, मल्टी ऑर्गन डिस्फंक्शन सिंड्रोम जैसी बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए ऑक्सीजन लेवल पर बहुत ध्यान दें।यह भी पढ़ें: ब्लैक फंगस के बाद अब व्हाइट फंगस का खतरा, स्वास्थ्य विभाग ने जारी किया अलर्ट, जानें लक्षण और बचाव
आपके मन में उठने वाले सारे सवालों के जवाब (केंद्र सरकार की गाइडलाइन के आधार पर)
जवाब- ज्यादातर बच्चे लक्षणविहीन या हल्के लक्षण वाले होंगे। उनमें बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, थकावट, सूंघने और स्वाद की क्षमता में कमी आना, नाक बहना, मांसपेशियों में तकलीफ, गले में खराश जैसे लक्षण होंगे। कुछ बच्चों में दस्त आना, उल्टी होना, पेट दर्द या आंत संबंधित शिकायत हो सकती है। कुछ में मल्टी सिस्टम इंफलामेट्री सिंड्रोम होगा। ऐसे बच्चों को बुखार 38 सेंटीग्रेड से अधिक होगा। इन बच्चों में खांसी, नाक बहना व गले में खराश जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।
जवाब- बुखार आने पर डॉक्टर की सलाह पर पैरासिटामोल 10 से 15 एमजी, बच्चे के वजन के हिसाब से 4 से 6 घंटे में दिया जा सकता है। बड़े या किशोरों में कफ आने पर गरम पानी के गरारे करवाएं। आप उन्हें तरल पदार्थों का सेवन करवाएं। किसी भी प्रकार के एंटीबॉयोटिक नहीं देना है।
जवाब- दिन में 2-3 बार ऑक्सीजन लेवल की जांच करें। सीने में समस्या, शरीर का नीलापन, अत्याधिक ठंड लगना, मूत्र की मात्रा, तरल पदार्थ का सेवन, गतिविधियां छोटे बच्चों में। इन सभी एक दैनिक चार्ट बना लें। बदलाव होने पर डॉक्टर से संपर्क करें।
जवाब- अगर, किसी भी प्रकार से रोग से ग्रस्त नहीं है तो किसी अन्य लैब टेस्ट की आवश्यकता नहीं है। सवाल- खानपान का किस प्रकार ध्यान रखें?
जवाब- अगर, बच्चा स्तनपान कर रहा है तो यह सबसे बेहतर है। अगर, नहीं कर रहा है तो प्रोत्साहित करें। फ्लूएड थैरेपी शुरू की जा सकती है।