युवा संन्यासी को अयोध्या के लोमस ऋषि आश्रम से छत्तीसगढ़ खींच लाई संगीत की तड़प
यह कुछ लोगों से बात करके नहीं समझा जा सकता। इसके लिए उन्हीं के बीच रहना
होता है। विश्वविद्यालय के छात्रावास में यह अनुभव मुझे मिल रहा है।
मिथिलेश मिश्र. रायपुर. ईश्वर की साधना के लिए संकल्पित एक संन्यासी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के बीच बैठकर सुरों की साधना कर रहे हैं। ये अयोध्या के लोमस ऋषि आश्रम से दीक्षित संन्यासी स्वामी रामशंकर दास हैं, जिन्हें संगीत की तड़प छत्तीसगढ़ खींच लाई है। विश्वविद्यालय अधिकारियों के मुताबिक परिसर में देश-विदेश से बहुत से विद्यार्थी हर साल आते हैं। संभवत: यह पहला मौका है जब कोई संन्यासी यहां संगीत सीखने पहुंचा है।
विश्वविद्यालय में गायन के प्राध्यापक डॉ. नमन दत्त बताते हैं कि जब दास प्रवेश लेने आए थे तो सामान्य विद्यार्थी की तरह ही पेश आए थे। संगीत सीखने के मकसद पर बात हुई तो उन्होंने उसके आध्यात्मिक पक्ष को समझने की इच्छा जताई थी। उस समय लगा कि पेशेवर नजरिए वाले इस दौर में कोई युवा है जो संगीत को विशुद्ध संगीत के रूप में लेना चाहता है। स्वामी रामशंकर का कहना है कि युवा पीढ़ी का नजरिया समझना संगीत संस्थान में दाखिले की मुख्य वजह थी। यह कुछ लोगों से बात करके नहीं समझा जा सकता। इसके लिए उन्हीं के बीच रहना होता है। विश्वविद्यालय के छात्रावास में यह अनुभव मुझे मिल रहा है।
लगातार सीखने की ललक
स्वामी रामशंकर वैष्णव की रामानंदी परम्परा के संन्यासी हैं। लेकिन लगातार सीखने की ललक उन्हें दूसरे साधुओं से अलग बनाती है। बीकॉम की पढ़ाई के दौरान ही 2008 में रामशंकर ने संन्यास की दीक्षा ले ली थी। 2009 में बीकॉम की डिग्री पूरी की। इस बीच गुजरात के गुरुकुल वानप्रस्थ साधक ग्राम आश्रम रोजड़ में योग दर्शन की पढ़ाई की। बाद में हरियाणा के जींद स्थित गुरुकुल से संस्कृत व्याकरण पढ़ा। सितम्बर 2012 में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा स्थित गुरुकुल सांदीपनी हिमालय में धर्म शास्त्रों,वेदांत और उपनिषदों का अध्ययन कर शास्त्र स्नातक की उपाधि ली। वहां से मुंगेर स्थित बिहार स्कूल ऑफ योगा और फिर पुणे के कैवल्य धाम योग आश्रम में अध्ययन करते रहे।
हुगली से मिला खैरागढ़ का पता
स्वामी रामशंकर ने बताया कि आध्यात्मिक संगीत से उनका प्रेम पुराना है। लेकिन 2014 में कैवल्य धाम योग विद्यालय, लोनावला, पुणे से योग विज्ञान के अध्ययन के बाद उनके मन में संगीत सीखने की इच्छा बलवती हुई। अपने साथियों से प्रतिष्ठित संगीत संस्थानों की जानकारी ली। एक रात जनरल बोगी में यात्रा कर वे कर्नाटक के हुगली स्थित गंगूबाई हंगल म्यूजिक स्कूल पहुंच गए। वहां पता चला कि संगीत के शुरुआती प्रशिक्षण की सुविधा यहां उपलब्ध नहीं है। हुगली के प्राध्यापकों ने ही उन्हें खैरागढ़ का पता दिया।
ऑडीशन में गाया ख्याल
स्वामी रामशंकर जून 2015 खैरागढ़ विश्वविद्यालय पहुंचे। यहां उन्होंने बीए ऑनर्स में दाखिले के लिए आवेदन किया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने ऑडीशन लिया। इसमें उन्होंने राग यमन में छोटा ख्याल पेश किया। उनको दाखिला मिला और तालीम शुरू हो गई। अब वे परिसर में सहपाठियों और स्थानीय निवासियों को योग के रहस्यों से परिचित करा रहे हैं।
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