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Raipur News: सरकारी अस्पतालों के भरोसे फल-फूल रहे निजी अस्पताल व डायग्नोस्टिक सेंटर, मरीज व परिजनों को भड़का रहे दलाल…

Raipur News: राजधानी के कुछ निजी अस्पताल व डायग्नोस्टिक सेंटर फल-फूल रहे हैं। दरअसल छोटे अस्पतालों को छोड़ भी दिया जाए तो कई बड़े अस्पतालों में कई जरूरी जांचें नहीं होतीं।

रायपुरSep 05, 2024 / 11:54 am

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पीलूराम साहू Raipur News: आंबेडकर, एम्स, जिला अस्पताल, सीएचसी, पीएचसी, मोहल्ला क्लीनिक के भरोसे राजधानी के कुछ निजी अस्पताल व डायग्नोस्टिक सेंटर फल-फूल रहे हैं। दरअसल छोटे अस्पतालों को छोड़ भी दिया जाए तो कई बड़े अस्पतालों में कई जरूरी जांचें नहीं होतीं। सरकारी अस्पताल में अच्छा इलाज नहीं होता या दूसरी भ्रामक जानकारी देकर कुछ दलाल किस्म के लोग मरीज व उनके परिजनों को बरगलाते हैं।

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ऐसे में वे मरीजों को निजी अस्पताल में शिफ्ट करने में कामयाब देते हैं। इसके एवज में निजी अस्पताल से अच्छा पैसा भी मिल जाता है। कई एजेंट टाइप लोगों का घर-परिवार भी इसी से चल रहा है। एम्स में 3 सितंबर को महादेवघाट निवासी मरीज धरम साहू को इमरजेंसी विभाग से अग्रवाल अस्पताल रेफर किया गया था।

सरकारी अस्पताल के मरीजों को निजी में रेफर करने का नियम नहीं

नियमानुसार एम्स समेत कोई भी सरकारी अस्पताल किसी मरीज को निजी अस्पताल रेफर नहीं कर सकता। एम्स के स्टाफ व डॉक्टर पर सवालिया निशान इसलिए भी है, क्याेंकि मरीज के परिजनों को निजी अस्पताल से फोन भी आ गया था। पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि आंबेडकर अस्पताल में रोजाना 10 से ज्यादा मरीज निजी अस्पतालों में रेफर किए जा रहे हैं। इसमें स्टाफ की मिलीभगत होती है। तीन साल पहले कैंसर विभाग के एक कंसल्टेंट डॉक्टर को ओपीडी व वार्ड के मरीजों के इलाज से हटा दिया था।
दरअसल उस डॉक्टर पर मरीजों को निजी अस्पताल भेजने का आरोप था। उनकी ड्यूटी मरीजों की सिंकाई के लिए लिनियर एक्सीलेटर मशीन के कमरे में लगा दी गई थी। खासकर ट्रामा सेंटर व कुछ वार्डों से मरीज निजी अस्पताल रेफर किए जा रहे हैं। गौर करने वाली बात ये है कि इसमें लामा यानी लेफ्ट अगेंस्ट मेडिकल एडवाइज जैसे मरीज भी होते हैं, जो व्यवस्था से तंग होकर निजी अस्पताल जाते हैं।

एक मछली गंदा कर देती है सारे तालाब को

एम्स के मरीज को निजी अस्पताल भेजने पर पत्रिका रिपोर्टर को किसी डॉक्टर ने कमेंट किया है कि एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। ऐसे में कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। आंबेडकर में भी जरूरी मशीन चालू नहीं होने, ब्लड जांच नहीं होने या सर्जरी नहीं होने पर कमीशनखोरी का आरोप लगता रहा है। ये चर्चा न केवल डॉक्टरों के बीच बल्कि स्टाफ के बीच भी चल रही है।

इसलिए उठ रहे सवाल

-आंबेडकर में पेट सीटी स्कैन व गामा कैमरा साढ़े साल से स्थापित होने के बाद भी मरीजों की जांच नहीं हो रही है। इस जांच के लिए एम्स में 40 दिनों की वेटिंग है। वहीं दो निजी अस्पतालों में 22 से 25 हजार रुपए जांच शुल्क है।
  • एसीआई में दो कार्डियक सर्जन होने के बाद भी हार्ट के मरीजों की बायपास सर्जरी नहीं हो पा रही है। सर्जरी के लिए जरूरी स्टाफ नहीं है। मरीज निजी अस्पतालों के भरोसे है।
  • रेडियोलॉजी विभाग में चार माह से सीटी इंजेक्टर मशीन बंद है। केवल 15 लाख खर्च है, लेकिन प्रबंधन को शासन ने फंड नहीं होने का हवाला दे दिया। यही नहीं मेडिकल कॉलेज के स्वशासी मद में 15 करोड़ रुपए से ज्यादा जमा हैं।
  • नेत्र रोग विभाग में रेटिना की सर्जरी के लिए जरूरी विक्ट्रेक्टॉमी मशीन दो साल बंद रही। यहां तीन रेटिना सर्जन सेवाएं दे रहे थे। हाल में मशीन चालू हुई है।
  • शुगर के मरीजों के लिए जरूरी एचबीए1सी की जांच भी नहीं हो रही है। यही नहीं विटामिन डी, बी-12 की जांच भी लंबे समय से ठप है। मरीज निजी डायग्नोस्टिक सेंटर जा रहे हैं।
वही आंबेडकर अस्पताल के अधीक्षक डॉ. एसबीएस नेताम ने कहा कि जो मशीनें बंद हैं, उन्हें चालू करने के लिए शासन स्तर पर प्रयास जारी है। जरूरी ब्लड जांच के लिए री-एजेंट भी मंगाया जा रहा है। कुछ मरीजों को निजी अस्पताल भेजने की शिकायतें आती हैं, लेकिन पुख्ता जानकारी नहीं होने के कारण कार्रवाई नहीं हो पाती।

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