यहां तक एंबुलेंस में मरीज की देखरेख करने वाले प्रशिक्षित स्टाफ भी नहीं होते। ऐसे में घर से अस्पताल लाते तक अगर किसी मरीज की हालत नाजुक हो जाए तो इलाज के अभाव में वह रास्ते में ही दम तोड़ सकता है। पत्रिका ने मंगलवार को एक बार फिर सरकारी अस्पतालों के ईर्द-गिर्द फैले एंबुलेंस नेटवर्क की पड़ताल की। ज्यादातर एंबुलेंस में सुरक्षा उपकरण नदारद मिले।
एक मरीज को दूर गांव ले जाने की बात कहते हुए टीम ने पूछा कि इस बीच कार्डियक मॉनीटर, ट्रैक्शन डिवाइस की भी जरूरत पड़ेगी। आपके पास ये सुविधाएं हैं? चालक ने हैरानी जताते हुए टीम से ही पूछ लिया कि ये सब क्या होता है। मेरा काम मरीज को (CG Hindi News) घर छोड़ना है। ऑक्सीजन सिलेंडर चाहिए तो बताइए। दूसरे एंबुलेंस से लाकर फिट कर दूंगा। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि दूर गांव के किसी मरीज को निजी एंबुलेंस से रायपुर जाना कितना सुरक्षित है?
निजी वाहनों को एंबुलेंस बनाना अवैध, इसी से कमाई कर रहे हैं नियमों के मुताबिक निजी वाहनों को एंबुलेंस के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। एंबुलेंस का रजिस्ट्रेशन किसी संस्था, निजी या सरकारी अस्पताल के नाम पर ही हो सकता है। लेकिन, रायपुर से दौड़ने वाली ज्यादातर एंबुलेंस निजी नाम-पते पर ली गई हैं। बता दें कि एंबुलेंस के नाम पर रजिस्ट्रेशन करवाने से टैक्स से छूट मिलती है। वन टाइम टैक्स की व्यवस्था है। नियमित फिटनेस जांच जरूरी है। लेकिन, शहर के ज्यादातर एंबुलेंस अनफिट ही सड़कों पर दौड़ रहे हैं।
ये उपकरण जरूरी एंबुलेंस में मरीज के प्रारंभिक उपचार का इंतजाम होना चाहिए। रास्ते में मदद के लिए प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी भी साथ होना चाहिए। एडवांस लाइफ सपोर्ट (एएलएस), स्ट्रेचर, ट्रैक्शन डिवाइस, कार्डियक मॉनीटर, बीपी मॉनीटर, ऑक्सीजन मशीनों का जानकार भी एंबुलेंस में होना चाहिए।
बिना सुरक्षा उपकरणों के अगर एंबुलेंस चलाई जा रही है तो हम इसकी जांच करवाएंगे। ऐसा करना मरीजों की जान से खिलवाड़ है। शिकायत सही (Raipur News) पाई गई तो संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। – डॉ. मिथिलेश चौधरी, सीएमएचओ