मरीजों की देखरेख में बहा रहे गाढ़ी कमाई दरअसल, शहर में सभी बड़े मल्टीस्पेशिलिटी अस्पतालों के आसपास के मकान तेजी से गेस्ट हाउस में तब्दील हो रहे हैं। आवासीय को कमर्शियल बनाकर लोग खूब चांदी भी काट रहे हैं। इन मकानों में एक-एक बेड वाले कमरों के एक दिन का किराया 700 से 1 हजार रुपए तक है। परिजन 24 घंटे मरीज के साथ नहीं रह सकते। देखभाल के लिए आसपास रहना जरूरी है। इसी मजबूरी में लोगों को अपनी गाढ़ी कमाई बहानी पड़ रही है। दूसरी ओर कई ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे गेस्ट हाउस में रूक सकें। मजबूरन वे अस्पताल के बाहर खाना बनाते, सोते दिख जाते हैं।
मेडिकल हब बन चुके इलाकों में किराया… इलाका किराया (प्रतिदिन) पचपेड़ी नाका- 1000-1500 रु. राजेंद्र नगर – 700-1000 रु. मोवा – 500-1000 रु. टाटीबंध – 750-1200 रु.
मरीज अस्पताल में और परिजन किराए के कमरे में केस-1: पति को कैंसर, कीमो के लिए 2 हफ्ते से आई हैं, बाहर रहती हैं सुकमा से आई महिला के पति पचपेड़ी नाका के एक अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें कैंसर है। कीमो थैरेपी चल रही है। डॉक्टर ने 6 हफ्ते लगातार कीमो करवाने कहा है। पति का इलाज आयुष्मान योजना से हो रहा है। लेकिन, खुद के रहने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। वे अपने एक बेटे के साथ 2 हफ्ते से रूकी हैं। दोनों दिनभर मरीज की देखभाल करते हैं। रात में अस्पताल के आसपास ही कहीं जगह देखकर सो जाते हैं।
केस-2: बेटी की जान बचाने पिता और पुत्र 2 सप्ताह से कर रहे संघर्ष राजेंद्र नगर के एक अस्पताल में देवभोग की एक 16 साल की लड़की 2 हफ्ते से भर्ती है। उसकी किडनी में समस्या है। उसके पिता और भाई भी रायपुर आए हैं। पिता ने बताया कि मजदूरी से घर चलता है। सरकारी योजना से बेटी का इलाज करवा रहा हूं। आसपास रूकने का इंतजाम पता किया तो बहुत ज्यादा किराया बताया गया। मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं। इसीलिए अस्पताल के बाहर ही पार्किंग एरिया में सो जाते हैं।
सरकार से व्यवस्था की लगाई गुहार निरामया फाउंडेशन ऐसे मरीजों के परिजन की मदद की गुहार लगाई है जिनके पास रूकने-खाने का इंतजाम नहीं है। फाउंडेशन की सुदेशना रूहान ने बताया, कैंसर का इलाज कराने दूर-दराज से ग्रामीण रायपुर आते हैं। ये इलाज लंबा चलता है। कई बार परिजनों के पास रूकने-खाने के पैसे भी नहीं होते। ये लोग हॉस्पिटल के बाहर रहते-खाते हैं। इनकी मदद के लिए सरकार को कोई इंतजाम करना चाहिए।
निर्धारित उपयोग से इतर इस्तेमाल करना गैर कानूनी है। अगर मकानों का उपयोग कोटल की तरह किया जा रहा है तो ये गलत है। ऐसे मामलों में निगम एक्ट की धारा 303 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। फिलहाल नियमितिकरण की प्रयास जारी है। ऐसे में ये देखना होगा कि जो आवासीय मकानों का कमर्शियल यूज कर रहे हैं, उन्होंने नियमितिकरण करवाया है या नहीं।
– निशिकांत वर्मा, नगर निवेशक, रायपुर नगर निगम