कभी-कभी सोकर उठने के बाद ये डिमोटिवेट भी फील करते हैं। दिन बढऩे के साथ चिड़चिड़ापन भी कम होने लगता है। यही मॉर्निंग डिप्रेशन है। इसे ऑफिशियल मेडिकल कंडीशन तो नहीं माना जा सकता। लेकिन, साइकाट्रिस्ट इसे डिप्रेशन की शुरुआत (health news) जरूर बता रहे हैं। मतलब कोई व्यक्ति अगर लगातार 2 हफ्ते से इन परिस्थितियों से गुजर रहा है तो बहुत ज्यादा संभावना है कि वह ऑफिशियल डिप्रेशन का शिकार हो जाए। इसके बाद तकलीफें और बढ़ सकती हैं।
मोबाइल व लेट नाइट वर्क मुख्य वजह मॉर्निंग डिप्रेशन के शिकार होने वाले ज्यादातर रोगियों की उम्र 16 से 35 वर्ष के बीच है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसा स्लीप साइकिल बिगडऩे की वजह से है। आजकल ज्यादातर युवा देर रात तक मोबाइल चलाने के आदी हैं। इसके चलते कभी वे 12 बजे (health care) सोते हैं, कभी 2 तो कभी 3-4 बजे तक भी जागते हैं। रोज अलग समय पर सोने से स्लीप साइकिल बिगड़ जाता है। जो लोग देर रात तक काम करते हैं, उन्हें भी यह समस्या होने की संभावना अधिक होती है। ऐसे लोगों की मेमोरी और कॉन्सन्ट्रेशन पर काफी बुरा असर पड़ता है।
सर्केडियन रिदम भी बड़ी वजह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार जिन्हें डिप्रेशन होता है, उनका सर्केडियन रिदम अक्सर खराब रहता है। ये मॉर्निंग डिप्रेशन के प्रमुख कारणों में से एक है। सर्केडियन रिदम एक तरह से यह शरीर में 24 घंटे चलने वाली बॉयोलॉजिक क्लॉक है। ये हमारे सोने और उठने को नियंत्रित करता है। साथ ही, पूरे दिन दिमाग को सजग (morning depression) रहने में मदद करता है। रात के समय यह सोने या आराम का सिग्नल देता है। जब सर्केडियन रिदम प्रभावित होता है तो हॉर्मोन, बॉडी टेंपरेचर, फूड हैबिट, मूड, स्लिप साइकिल सब पर असर दिखने लगता है।
एक ही समय पर सोएं, कम से कम 6 घंटे नींद एक्सपर्ट के मुताबिक अपनी आदतों में छोटे-मोटे बदलाव कर मॉर्निंग डिप्रेशन से निपटा जा सकता है। जैसे हर दिन एक ही समय पर सोने जाएं। सुबह उसी समय पर उठें। नियमित समय पर खाना खाएं। लंबे समय तक सोने से बचें। कमरे में ऐसा वातावरण बनाएं जो नींद बढ़ाए। जैसे कि अंधेरा, शांत और ठंडा कमरा। साथ ही कैफीन, शराब और तंबाकू जैसी चीजों से परहेज करें। इससे नींद में खलल पैदा होता है।
मॉर्निंग डिप्रेशन आने से पूरा दिन भी खराब हो जाता है। ऐसे लोग पूरे दिन पॉजिटिव एनर्जी के लिए संघर्ष करते हैं। निगेटिव मांइडसेट से दिमाग धीमे काम करने लगता है। इससे गलती होने की आशंका बढ़ जाती है। किसी काम में फोकस करना मुश्किल हो जाता है।
– सोनिया परियल, साइकाट्रिस्ट