राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ के 23 विधायकों को मंत्री और राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया था। इसमें से 13 मंत्री व राज्य मंत्री अपना चुनाव हार गए थे। इनमें डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकार, अमितेष शुक्ला, बीडी कुरैशी, धनेश पाटिला जैसे दिग्गज नेताओं के नाम शामिल थे। इस दौरान भाजपा की सरकार बनी। इसके बाद हुए चुनाव में भाजपा के चार मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा था। गणेशराम भगत, अजय चंद्राकर जैसे प्रमुख नेता शामिल थे। प्रदेश में दोबारा भाजपा की सरकार बनी। मंत्रिमंडल में नए चेहरे आए, लेकिन इसके बाद हुए चुनाव में पांच मंत्रियों को हार मिली। इनमें राम विचार नेताम, ननकी राम कंवर, हेमचंद यादव, उता उसेण्डी व चंद्रशेखर साहू शामिल थे। इसके बाद तीसरी बार भाजपा की सरकार बनी, लेकिन इसके बाद हुए चुनाव में भाजपा की बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। इसमें रमन सिंह सहित दो मंत्रियों को छोड़कर सभी को जनता ने पसंद नहीं किया और उन्हें हार मिली।
अब तक मुख्यमंत्री चुनाव नहीं हारे राज्य निर्माण के बाद वर्ष 2023 को मिलाकर पांच विधानसभा चुनाव हुए हैं। इन पांच चुनाव में छत्तीसगढ़ को तीन मुख्यमंत्री मिले हैं। खास बात यह है कि मुख्यमंत्री रहते हुए, जो चुनाव लड़ा है, वो चुनाव नहीं हार है। यह बात अलग है कि उनकी सरकार चली गई है। छत्तीसगढ़ में दिवंगत अजीत जोगी उप चुनाव जीतकर पहले मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में वे चुनाव जीते, लेकिन कांग्रेस की सरकार नहीं बनी। इसके बाद तीन बार तक डॉ. रमन सिंह ने मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली। वर्ष 2018 में उनकी सरकार चली गई, लेकिन उन्होंने अपना चुनाव जीत लिया था। इस बार मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी भूपेश बघेल संभाल रहे हैं। अभी वर्ष 2023 के चुनाव के नतीजे आना बाकी है।
मंत्रियों के हार की यह है बड़ी वजह विधायकों के मंत्री बनाने के बाद उनका कद बढ़ जाता है। वे विधानसभा क्षेत्र के न होकर, पूरे प्रदेश के नेता हो जाते हैं। उनका ज्यादातर प्रवास राजधानी में रहता है। इस वजह से अपने क्षेत्र के लोगों से मेल-मुलाकात थोड़ी कम हो जाती है। एक तरह से जनता से दूरी बढ़ जाती है। मंत्री होने की वजह से क्षेत्र के लोगों की उम्मीदें भी बढ़ जाती है। जब मंत्री जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते, तो जनता की नाराजगी बढ़ जाती है। इसका सीधा असर चुनाव में पड़ता है।