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रायपुर

फिंगेश्वर ब्लाक के किसान ले रहे रागी की फसल, कम लागत में मिलेगी अधिक मुनाफा

खेती-किसानी में मुनाफे वाली फसलों की खेती करने के लिए किसानों को राज्य शासन व केंद्र शासन द्वारा लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। इन्हीं में से लघु धान्य फसल रागी एक ऐसी फसल है, जिनका हजारों साल का पुराना इतिहास है। माना जाता है कि इसकी खेती हमारे देश में 4 हजार साल पहले शुरू हुई थी। इस फसल की बुवाई की सबसे पहले अफ्रीका में हुई थी। हमारे पूर्वज इसकी खेती लंबे समय से करते आ रहे थे।

रायपुरApr 02, 2023 / 05:20 pm

Gulal Verma

फिंगेश्वर ब्लाक के किसान ले रहे रागी की फसल, कम लागत में मिलेगी अधिक मुनाफा

फिंगेश्वर ब्लाक के किसान ले रहे रागी की फसल, कम लागत में मिलेगी अधिक मुनाफा

फिंगेश्वर. खेती-किसानी में मुनाफे वाली फसलों की खेती करने के लिए किसानों को राज्य शासन व केंद्र शासन द्वारा लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। इन्हीं में से लघु धान्य फसल रागी एक ऐसी फसल है, जिनका हजारों साल का पुराना इतिहास है। माना जाता है कि इसकी खेती हमारे देश में 4 हजार साल पहले शुरू हुई थी। इस फसल की बुवाई की सबसे पहले अफ्रीका में हुई थी। हमारे पूर्वज इसकी खेती लंबे समय से करते आ रहे थे। इस बीच में कृषकों का रुझान धान व गेहूं की फसलों पर गया और लघु धान्य वाली फसल रागी खेत से व भोजन की थाली से गायब हो गई। परंतु, अब शासन के लगातार प्रचार-प्रसार के कारण कृषकों ने अपने खेतों में रागी को स्थान देना शुरू कर दिया है। रागी में प्रोटीन के साथ-साथ अमीनो एसिड, कैल्शियम, पौटेशियम की मात्रा काफी मात्रा में पाई जाती है। कम हीमोग्लोबिन वाले व्यक्ति के लिए रागी का सेवन करना बेहद फायदेमंद होता है।
रागी की फसल में कम लगते हैं कीटप्रकोप
ब्लाक के ग्राम जेंजरा के किसान मेधावी साहू ने बताया कि इस वर्ष उन्होंने 3.50 एकड़ में रागी की फसल की खेती कृषि विभाग के मार्गदर्शन में कर रहे हैं। बताया जाता है कि रागी कि फसल भर्री भांठा या उच्च भूमि में किया जाता है, लेकिन किसान मेधावी साहू ने जहां रागी की खेती की है वह खेत चारों ओर से धान के खेत से घिरा हुआ है। उन्होंने खेत मे पानी जमा ना हो इसलिए खेत मे कई जल निकासी नालियां निकाली है। जिससे खेत में पानी जमा नहीं होता है। जिस कारण फसल की बढ़वार काफी अच्छी है। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार रागी की खेती काफी सरल है। इसमें धान की फसल की अपेक्षा कीट व रोग व्याधि बहुत कम लगते हैं। जिसके कारण खेती में लागत बहुत कम आती है। यानी रागी की फसल कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल हैं।
400 हेक्टयर में रागी की फसल
ब्लाक में रागी की फसल फिंगेश्वर सहित जेंजरा, तर्रा, सुरसाबांधा,धुरसा, सरगोड़, भेंडऱी आदि गांवो ंके किसानों द्वारा 400 हेक्टेयर में लगाया गया है। जिसमें 51 हेक्टेयर के फसल का पंजीयन बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत बीज निगम जिला गरियाबंद में कराया है। जिसे 5700 रुपए प्रति क्विंंटल की दर से उत्पादित रागी की फसल को खरीदी किया जाएगा। वहीं, जिस रकबा के किसानों का बीज निगम में पंजीयन नहं हुआ है, उसके उत्पादित फसल को वन समिति के माध्यम से 3575 रुपए प्रति क्विंंटल की दर से खरीदा जाएगा।
रागी में पानी की होती है कम खपत
विभाग के अधिकारियों के अनुसार धान की फसल में जहां भारी मात्रा में बुआई से लेकर कटाई तक पानी की भारी मात्रा में जरूरत होती हैं। वहीं, रागी की फसल में बहुत ही कम पानी में फसल पककर तैयार हो जाता है। रागी की फसल में मात्र खेत की मिट्टी को भिगाकर ही फसल तैयार हो जाता है। बताया गया कि रागी की उत्तम पैदावार के लिए भर्री भांठा जमीन सबसे उपयुक्त होती है। जहां पानी ज्यादा देर तक नहीं ठहरता, जिससे मात्र जमीन हल्का गीला होता हैं। जो रागी फसल के लिए सबसे उपयुक्त होता हैं।
किसानों को दिया जाता है तकनीकी मार्गदर्शन
वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी बीआर साहू ने बताया कि रागी का बीज व आदान सामग्री के रूप में सुपर कम्पोस्ट, खरपतवार नाशक, जैविक कीटनाशक विभाग से कृषकों को प्रदाय किया गया है। जिसमे समय-समय पर कृषि विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों द्वारा किसानों को सम सामायिक सलाह व तकनीकी मार्गदर्शन दिया जा रहा है। वहीं, उप संचालक कृषि संदीप भोई ने बताया कि रागी की खेती के लिए शुष्क जलवायु की जरूरत होती है। भारत में ज्यादातर जगहों पर इसे खरीफ की फसल के रूप में उगाते हैं। इस वर्ष कृषकों को रागी की बीज किस्म वी एल मंडुआ. 379 कृषकों को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत प्रदाय किया गया। इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 95 से 100 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं।

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