गणेश स्थापना विधि (Ganesh Sthapana Vidhi 2019)
वास्तु शास्त्र में मूर्ति स्थापना में दिशा के महत्व को बताया गया है और साथ ही गणेश भगवान की प्रतिमा स्थापित करते हुए इन बातों का ख्याल रखना चाहिए । आइए जानते हैं कि किस दिशा में गणेश भगवान की प्रतिमा स्थापित करना शुभ फलदायक होता है…
वास्तु शास्त्र के अनुसार, गणेश जी को विराजमान करने के लिए ब्रह्म स्थान, पूर्व दिशा और उत्तर पूर्व कोण शुभ माना गया है। ऐसा करने से मंगलदायक परिणाम की प्राप्ति होती है लेकिन भूलकर भी इन्हें दक्षिण और दक्षिण पश्चिम कोण यानी नैऋत्य में नहीं रखें इससे हानि होती है। इस बात का ख्याल रखें कि जब आप गणेश प्रतिमा स्थापित करने हेतु घर में प्रवेश करें तो गणपति की सूंड बाईं तरफ मुड़ी होनी चाहिए।
गणपति स्थापना के लिए मूर्ति का चुनाव करते वक्त इस बात का ख्याल रखें कि बप्पा के एक हाथ में अंकुश, मोदक और एक हाथ में उनका टूटा हुआ दांत होना चाहिए। साथ ही एक हाथ आशीर्वाद देते हुए भी होना चाहिए और साथ में उनकी सवारी चूहा भी हो।
एक ही जगह पर गणेश जी की दो मूर्ति एक साथ नहीं रखें। वास्तु विज्ञान के अनुसार इससे उर्जा का आपस में टकराव होता है जो अशुभ फल देता है। अगर एक से अधिक गणेश जी की मूर्ति है तो दोनों को अलग-अलग स्थानों पर रखें।
गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर को कभी ऐसे न रखें जिसमें वह घर के बाहर देख रहे हों। गणेश जी की मुख हमेश उस दिशा में होना चाहिए जिससे वह घर की ओर देखते नजर आएं। अगर मूर्ति बाहर की ओर देखते हुए लगाएं तो ठीक इनके पीछे एक मूर्ति लगा दें ताकि गणेश जी का पीठ अंदर की तरफ नहीं दिखे। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि गणेश जी के पृष्ठ भाग पर दुख और दरिद्रता का वास माना गया है।
गणेश जी को विराजमान करने के लिए ब्रह्म स्थान, पूर्व दिशा और उत्तर पूर्व कोण शुभ माना गया है लेकिन भूलकर भी इन्हें दक्षिण और दक्षिण पश्चिम कोण यानी नैऋत्य में नहीं रखें इससे हानि होती है।