छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के डीपाडीह के प्राचीन मंदिरों की चर्चा पूरे क्षेत्र में रहती है. यहां ढेर सारे मंदिरों के अवशेष देखने को मिलेंगे. मंदिरों के अवशेष कई किलोमीटर के क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं, जिन्हें एक जगह रखा गया है. यह एक खुले मैदान में संग्रहालय की तरह है. डीपाडीह मंदिरों का सर्वे 1987 में हुआ जिसके बाद 1989 में इस मंदिर की खुदाई शुरू की गई.
जानकार बताते हैं कि डीपाडीह में कई अलग अलग काल के और विभिन्न शासकों के वंश से सम्बन्धित मन्दिर मिलें हैं. यहां से मिले अवशेषों के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां का इतिहास और कला काफी संपन्न रहें होंगे. यहां पर कई अलग अलग काल के और विभिन्न शासकों के वंश से सम्बन्धित मन्दिर मिलें हैं.
डीपाडीह में मिले उरांव टोला शिव मंदिर, सावंत सरना प्रवेश द्वार, महिषासुर मर्दिनी की विशिष्ट मूर्ति, पंचायतन शैली की शिव मंदिर, लक्ष्मी की मूर्ति, उमा महेश्वर की आलिंगनरत मूर्ति, भगवान विष्णु, कुबेर, कार्तिकेय की कलात्मक मूर्तियां देखने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं. स्थानीय लोगों की माने तो यहां पर दूध चढ़ाने से उनकी सारी मन्नते पूरी होती हैं.
डीपाडीह में भगवान शिव का विशाल शिवलिंग है. इस परिसर में आपको छोटे बड़े बड़ी संख्या में शिवलिंग देखने को मिलेंगे. इस मंदिर के द्वार में कई तरह के मूर्तियां बनी हुई हैं, यह मंदिर पंचरथ शैली में बना हुआ है. यह मंदिर सामंत सरना समूह के अंतर्गत आता है. इस मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग है, जिसे आज भी स्थानीय लोगों द्वारा पूजा जाता है. यहां का शिवलिंग दर्शनीय योग्य है. यहां पर शिवरात्रि में मेला लगता है और दशहरा में भी कई सारे श्रदालु आते हैं और पूजा पाठ करते हैं.
श्रद्धालुओं की माने उनकी सारी मन्नते यहां पर पूरी होती हैं. सुरक्षा की बात करें तो यहाँ कई सारी मूर्तियों को बाहर ही रखा गया है और कई सारी मूर्तियों को संग्रहालय में रखा गया है. मूर्तियों बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है. यहां की कई सारी दुर्लभ मूर्तियां चोरी हो चुकी है. मूर्तियों की सुरक्षा के लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने चाहिए।जिला प्रशासन को इस पर ठोस पहल करने की जरूरत है. विधायक बृहस्पति सिंह ने भी इस पर ठोस कदम उठाने की बात कही है. ताकि जिले की पहचान बरकरार रहे.