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रायपुर

जीवन में आई चुनौतियों से कभी नहीं हारी, छत्तीसगढ़ की संस्कृति को पहुंचाया देश-विदेश तक , जानिए पद्मश्री तीजन बाई के बारे में

Patrika Achivement : पत्रिका अचीवमेंट स्पेशल सीरीज है। जिसमें हम बताएंगे छत्तीसगढ़ की उन हस्तियों के बारे में जिन्होंने बेहद कम संसाधनों में रह कर जीवन में सफलता हासिल की। इसी कड़ी में आज हम जानेंगे पद्मश्री पांडवनी गायक तीजन बाई( Teejan Bai) के संघर्ष और उपलब्धियों के बारे में

रायपुरJun 12, 2023 / 02:50 pm

चंदू निर्मलकर

जीवन में आई चुनौतियों से कभी नहीं हारी, छत्तीसगढ़ की संस्कृति को पहुंचाया देश विदेश तक , जानिए तीजन बाई के बारे में

जीवन में आई चुनौतियों से कभी नहीं हारी, छत्तीसगढ़ की संस्कृति को पहुंचाया देश विदेश तक , जानिए तीजन बाई के बारे में,जीवन में आई चुनौतियों से कभी नहीं हारी, छत्तीसगढ़ की संस्कृति को पहुंचाया देश विदेश तक , जानिए तीजन बाई के बारे में,जीवन में आई चुनौतियों से कभी नहीं हारी, छत्तीसगढ़ की संस्कृति को पहुंचाया देश विदेश तक , जानिए तीजन बाई के बारे में

Patrika Achivement : रायपुर. पत्रिका अचीवमेंट स्पेशल सीरीज है। जिसमें हम बताएंगे छत्तीसगढ़ की उन हस्तियों के बारे में जिन्होंने बेहद कम संसाधनों में रह कर जीवन में सफलता हासिल की। जिन्होंने जीवन में आई मुश्किलों को खुद पर हावी नहीं होने दिया। इसी कड़ी में आज हम जानेंगे पद्मश्री पांडवनी गायक तीजन बाई के संघर्ष और उपलब्धियों के बारे में
Patrika Achivement : तीजन बाई का जन्म भिलाई के गनियारी( Teejan bai birth place ) गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। तीजन बाई ने बचपन में नाना के यहाँ जाती थी। उनके नाना महाभारत की कहानियां गा कर सुनाया करते थे। यह कहानियां तीजन को याद हो गईं। तीजन भी इनको गाने लगीं।
Patrika Achivement : वे छुप कर अभ्यास करती थीं। एक दिन नाना ने पकड़ लिया। जिस लगन वे अभ्यास कर रहीं थीं , नाना पप्रभावित हुए। उनहोंने तीजन को बताया की इसे पंडवानी कहते हैं। एक महीने तक नाना ने तीजन को पंडवानी( Teejan Bai story) गाना सिखाया। वे उमेद सिंह देशमुख के संपर्क में आईं। उनसे भी पंडवानी गाना सीखा।

Patrika Achivement : 13 साल की ऊम्र में पंडवानी का मंच( Teejan Bai Performance) से प्रदर्शन किया। उस समय महिलाऐं पंडवानी बैठकर गाया करती थीं। तीजन पहली महिला थी जिन्होंने खड़े हो कर पंडवानी का प्रदर्श किया। इसके बाद तीजन बाई ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर अनेक हस्तियों के सामने पंडवानी का प्रदर्शन किया। देश विदेश में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया।
जीवन में आई चुनौतियों से कभी नहीं हारी, छत्तीसगढ़ की संस्कृति को पहुंचाया देश विदेश तक , जानिए तीजन बाई के बारे में
धीरे-धीरे मिली पहचान


Patrika Achivement : पंडवानी( Pandavani art) जहा विलुप्त होती जा रही थी। तीजन संघर्ष करके इसे जिन्दा रखने का प्रयास कर रहीं थी। कला की बदौलत धीरे-धीरे देश एवं विदेश से भी उन्हें सराहना मिलने लगी। वर्ष 1980 में वे भारत की सांस्कृतिक राजदूत के रूप में इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, टर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया, और मॉरीशस ( chhattisgarh culture ) जैसे देशों की यात्रा पर गई और पंडवानी की कला से लोगों का परिचय करवाया।
एक बोरा चावल थी पहली कमाई

Patrika Achivement : तीजन बाई( Teejan Bai) की शैली प्रसिद्ध होने लगी। दूसरे गांव से लोग गाने के लिए बुलाने लगे। तीज-त्यौहार पर लोक गीत गा कर सुनाती थीं। पडंवनी गाने के लिए कोई निश्चित राशि तय नहीं थी। लोग अपनी श्रद्धा अनुसार पैसे या चावल दिया करते थे। उनको 10 -20 पैसे मिल जाया करते थे। तीजन बताती हैं कि उनकी पहली कमाई एक बोरा चावल थी। जिसे बेचकर उन्होंने घर की छत बनवाई थी।
इसलिए रखा “तीजन” नाम

Patrika Achivement : इनका नाम तीजन क्यों पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी है। छत्तीसगढ़ में तीजा का पर्व बहुत अच्छे से मनाया जाता है। तीजन का जन्म हुआ। इतने शुभ दिन जन्म होने के कारण माता पिता ने तीजन “नाम रख दिया

इन पुरुस्कारों से हो चुकी हैं सम्मानित

Patrika Achivement : ‘पद्म विभूषण’( Teejan Bai Padma Vibhushan ) पुरस्कार से पहले तीजन बाई ( Teejan bai Awards) को वर्ष 1988 में ‘पद्मश्री’ , 1995 में श्री संगीत कला अकादमी पुरस्कार 2003 में डॉक्टरेट की डिग्री, 2003 में ‘पद्म भूषण’ 2016 में एम.एस. सुब्बालक्ष्मी शताब्दी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। सबसे रोचक बात यह है कि तीजन ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली, लेकिन उनकी उपलब्धि को देखते हुए बिलासपुर केंद्रीय विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें डी. लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।

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