इन जगहों से घोड़ो के आने-जाने पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया गया है। यहाँ के घोड़ो में इस बिमारी की जांच की जा रही है और अबतक दुर्ग में एक और राजनांदगाव में तीन घोड़ो में जांच के दौरान रिजल्ट पॉजिटिव पाया गया है।
पत्र के अनुसार, राज्य के सभी 27 जिलों में जिला पशुपालन विभाग को इस बिमारी के निगरानी के आदेश दिए गए हैं । पशु अधिनियम, 2009 में संक्रामक और संक्रामक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के प्रावधानों को लागू कर दिया गया है । इस दौरान घोड़ों के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है।
पेटा इंडिया (PETA India) ने अपने पत्र में राज्य सरकार से अनुरोध किया है की ग्लैंडर्स (glanders) के मनुष्यों के लिए संक्रामक होने के कारण शादियों और अन्य समारोहों में घोड़ों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। आपको बता दें कि घोड़ों को समान पहुंचाने, शादियों और सरकारी समारोहों में उपयोग किया जाता है। ऐसे में इस दौरान पूरी संभावना है कि ग्लैंडर्स (glanders) बिमारी इंसान को भी प्रभावित कर दे।
क्या है ग्लैंडर बिमारी
ग्लैंडर बरखेलडेरिया मेलिआई जीवाणु जनित रोग है। यह घोड़ों से मनुष्यों और स्तनधारी पशुओं में पहुंचता है। इसे जेनोटिक रोगों की श्रेणी में रखा गया। संक्रमण, नाक, मुंह के म्यूकोसल सरफेस और सांस से होता है। मैलिन नाम के टेस्ट से बीमारी को कन्फर्म किया जाता है। घोड़े, खच्चर, गधों के शरीर की गांठों में इंफेक्शन और पस बन जाती है। जानवर उठ नहीं पाता, शरीर में सूजन आ जाती है। बीमारी से पीडि़त होने पर मौत की संभावना बढ़ जाती है।
संक्रमण का दायरा
पीडि़त पशु के आस-पास के पशुओं में सौ प्रतिशत। 6 से 10 किमी तक के दायरे में 50 प्रतिशत। 30 किमी तक 20 प्रतिशत फैलने की संभावना रहती है।
मनुष्यों में लक्षण
* छाती में दर्द।
* शरीर में अकडऩ।
* तेज सिरदर्द।
* नाक से पानी बहता है।