गुंबज श्री यंत्र की आकृति का बनाया गया मंदिर
मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला बताते हैं कि मां महामाया देवी, मां महाकाली के स्वरुप में यहां विराजमान हैं। सामने मां सरस्वती के स्वरुप में मां सम्लेश्वरी देवी मंदिर विधमान है। इस तरह यहां महाकाली, मां सरस्वती, मां महालक्ष्मी तीनों माताजी प्रत्यक्ष प्रमाण रुप में यहां विराजमान हैं। मां के मंदिर के गर्भगृह की निर्माण शैली तांत्रिक विधि की है। मां के मंदिर के गुंबज श्री यंत्र की आकृति का बनाया गया है।
उस समय मूर्ति से आवाज निकली
हे राजन! मैं तुम्हारी कुल देवी हंू। तुम मेरी पूजा कर प्रतिष्ठा करो, मैं स्वयं महामाया हंू। राजा ने अपने पंडितों, आचार्यों व ज्योतिषियों से विचार विमर्श कर सलाह ली। सभी ने सलाह दी कि भगवती मां महामाया की प्राण-प्रतिष्ठा की जाए। तभी जानकारी प्राप्त हुई कि वर्तमान पुरानी बस्ती क्षेत्र में एक नया मंदिर का निर्माण किसी अन्य देवता के लिए किया गया है। उसी मंदिर को देवी के आदेश के अनुसार ही कुछ संशोधन करते हुए निर्माण कार्य को पूरा करके पूर्णत: वैदिक व तांत्रिक विधि से खारुन नदी से लाकर आदिशक्ति मां महामाया की प्राण प्रतिष्ठा की गई।
यह मंदिर हैहैवंश के राजा मोरध्वज खास तांत्रिक विधि से बनवाया था। हैहैवंश के राजाओं की माता कुलदेवी है। इस तरह राजवंश ने पूरी छत्तीस मंदिरों का निर्माण करवाया था, यह मंदिर राजाओं के किलों के पास स्थित है। पंडित शुक्ला बताते हैं कि मां के चरणों में जो भी भक्त सच्ची आस्था से मनोकामना मांगता है, वह पूरी जरूर पूरी होती है। यह देश का पहला ऐसा मंदिर है जहां दो भगवान भैरव स्वरूप दो मंदिर हैं।