पिछले साल का नहीं मिला भुगतान आरटीई के तहत स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले पालकों ने बताया कि स्कूल प्रबंधन के कहने पर उन्होंने ड्रेस और पुस्तकें खरीद ली। लेकिन स्कूल प्रबंधन ने अब तक पैसा नहीं दिया है। प्रबंधन से जब भी पैसे के लिए कहो, तो शासन से पैसा जारी होने के बाद भुगतान करने की बात कहते है। जिले के स्कूलों ने आरटीई के तहत पात्र छात्रों के पालकों को पिछले साल का भुगतान नहीं किया है।
खर्च होते है हजारों, मिलता है बहुत कम नर्सरी से कक्षा पांच तक के छात्रों का स्कूल ड्रेस में पालकों का दो हजार और पुस्तकें लगभग 3 हजार के आसपास मिलती है। इसके अलावा इवेंट एक्टिविटी के नाम पर साल भर में पांच हजार से ज्यादा खर्च हो जाता है। पालक जैसे तैसे स्कूल ड्रेस और पुस्तकें तो खरीद लेते है। इधर स्कूल प्रबंधन प्राइमरी में यूनीफार्म का 540 रुपए और पुस्तकों का 250 रुपए भुगतान करता है।
बडी क्लासों में यह राशि धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। स्कूल शिक्षा विभाग ने निजी स्कूलों को शासन की पुस्तकें चलाने के लिए कहा है। लेकिन कांप्टीशन के दौरान में स्कूल प्रबंधन प्राइवेट पब्लिकेशन की पुस्तकें चलाते है और इसका पैसा भी पालकों की जेब से लगता है। बाक्स कई बीच सत्र में छोड देते हैं स्कूल प्रदेश के 6584 निजी स्कूलों में आरटीई के तहत वर्तमान में 55280 सीट पात्र छात्रों के लिए आरक्षित है। कई बार स्कूल में हीन भावना का शिकार होने पर बीच सत्र में ही स्कूल छोड़ देते है।
केस- 1. 8,200 रुपए एक साल नहीं मिले राजेंद्र नगर के निजी स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ाने वाले एक पालक ने बताया कि पिछले साल बेटे का आरटीई के तहत चयन हुआ था। स्कूल प्रबंधन ने प्रवेश देने के बाद पुस्तक, ड्रेस खरीदने का मैसेज भेज दिया। स्कूल प्रबंधन के निर्देश पर दो जोडी ड्रेस गर्मी की, दो जोडी ड्रेस ठंड की, दो जोडी जूते, पुस्तकें और बैग खरीदा। इन सभी सामान का भुगतान 8 हजार 200 रुपए खर्च हुआ। ये राशि अब तक स्कूल प्रबंधन से नहीं मिली है।
केस-2. पक्षपात की शिकायतें भी टाटीबंध इलाके में संचालित निजी स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले एक पालक ने बताया कि उन्हें योजनाओं के तहत पुस्तकें-ड्रेस नहीं मिली। स्कूल में उनके बच्चे के साथ पक्षपात होता है। बच्चे घर आकर पूरी जानकारी देते है। शिकायत की, तो स्कूल प्रबंधन इन बातों से नकार देता है।