CG Film बनाने के लिए क्या करें? फिल्मकार सतीश जैन, मनोज वर्मा ने दी ये सीख
CG Film: सवाल-जवाब राउंड में जब एक छात्रा ने पूछा कि छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने के लिए क्या करना चाहिए? इस पर जैन ने कहा कि इसके लिए सबसे पहले तो छत्तीसगढ़ी फिल्म देखनी होगी..
CG Film: पुरानी बस्ती स्थित कॉलेज में बुधवार को किशोर साहू राष्ट्रीय अलंकरण से सम्मानित फिल्मकार सतीश जैन और मनोज वर्मा ‘छत्तीसगढ़ी सिनेमा की दशा और दिशा’ पर आयोजित परिचर्चा में शामिल हुए। वर्मा ने पूछा कि किस-किस ने सुकवा फिल्म देखी है। एक भी हाथ नहीं उठे। इसी तरह सतीश जैन की स्पीच के दौरान भी मोर छैंया भूईंयां 2 को लेकर सवाल पूछा। तब भी एक हाथ नहीं उठा। सवाल-जवाब राउंड में जब एक छात्रा ने पूछा कि छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने के लिए क्या करना चाहिए? इस पर जैन ने कहा कि इसके लिए सबसे पहले तो छत्तीसगढ़ी फिल्म देखनी होगी, उसके बाद आगे की बात होगी।
जैन ने कहा, जिस तरह कोई भी इंडस्ट्री प्रोडक्ट लॉन्च करते वक्त अपने खरीदार की पसंद पर रिसर्च करता है, ठीक वैसे ही फिल्म बनाते वक्त भी दर्शकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। ऑडियंस की साइकोलॉजी और टेस्ट ऑफ इंट्रेस्ट देखकर फिल्म बनानी चाहिए।
प्राचार्य युलेंद्र कुमार राजपूत ने कहा कि सार्थक सिनेमा के निर्माण पर अधिक बल देना चाहिए। अमित अग्रवाल ने कहा कि ऐसे आयोजन से विद्यार्थियों को सिनेमा निर्माण और पटकथा लेखन जैसी शैली सीखने में मदद मिलेगी। आकांक्षा दुबे, सिद्धांत त्रिपाठी, मंजू सिंह ठाकुर ने भी अपने विचार रखे।
रीजनल सिनेमा की ऑडियंस पजेसिव
जैन ने कहा कि हिंदी फिल्मों की ऑडियंस देशभर की होती है। उसमें किसी भी लैंग्वेज के गाने और डायलॉग हो सकते हैं। लोग उसे स्वीकार कल लेते हैं क्योंकि उसका दर्शक वर्ग देशभर से होता है, इसके उलट रीजनल में ऑडियंस पजेसिव हो जाती है। वह यह देखती है हमारा क्या है? हमारी बात, परपंरा, वेषभूषा और गाना है कि नहीं। इसलिए मेकर्स को रीजनल सिनेमा बनाने के लिए केयरफुल रहना पड़ेगा। अगर आप समंदर किनारे गाना शूट कर रहे या वायलेंस दिखा रहे तो यह दोनों चीजें छत्तीसगढ़ में नहीं हैं।
सार्थक सिनेमा भी जरूरी
मनोज वर्मा ने छात्रों को बताया कि किसी भी फिल्म की कहानी के पीछे कोई न कोई संदेश छिपा होता है वह संदेश दर्शकों को समझाने के लिए ही सिनेमा से आसान तरीका और कुछ नहीं होता। क्षेत्रीय सिनेमा को दर्शकों से जोडऩे के लिए सार्थक सिनेमा या सामाजिक सरोकार के सिनेमा का निर्माण भी किया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ में सिनेमा को देखने के लिए दर्शकों में कौतुहल न होना भी एक कारण है कि यहां का सिनेमा अन्य सिनेमा से कम देखा जाता है।
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