शिव शर्मा
रायपुर। बरसों से धारणा रही है कि कर्जा कम लो, बचत ज्यादा करो..! छत्तीसगढ़ के किसानों ने इस फॉर्मूले को पूरी तरह अपना रखा है। इसीलिए सिर्फ राजधानी को छोडक़र बाकी 27 जिलों में बैंकों में ज्यादा पैसा जमा हो रहा है, कर्ज बहुत कम ले रहे हैं। उनकी छोटी-मोटी जरूरतें सरकारी योजनाओं के कार्ड से पूरी हो जाती हैं। यहां तक कि खेती में भी वे अपनी जेब का ही पैसा लगा रहे हैं। नक्सल प्रभावित जिलों के लोग भी कर्जे पर निर्भर नहीं हैं। उनका ज्यादा जोर बचत में है। कम और ज्यादा कर्जे का अंतर समझने के लिए देखें रायपुर और कोरिया का उदाहरण। राजधानी का कर्ज-बचत अनुपात (सीडी रेश्यो) 108.1 प्रतिशत है। यहां के लोगों ने 58030.46 करोड़ रुपए बैंकों में जमा किए तो 62732.06 करोड़ रुपए का कर्जा लिया है। वहीं कोरिया के लोगों ने 5135.48 करोड़ रुपए बैंक में जमा किए, लेकिन कर्जा सिर्फ 1371.21 करोड़ रुपए लिया। यानी सीडी रेश्यो सिर्फ 26.69 प्रतिशत है।
बता दें कि प्रदेश के नक्सल प्रभावित जिलों के भी लोगों को भी कर्ज से ज्यादा बचत करने में भरोसा है। बस्तर में लोगों ने 4764.64 करोड़ रुपए बैंकों में जमा किया और कर्ज सिर्फ 2567.36 करोड़ रुपए लिया। दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर, सुकमा, कोंडागांव सभी की कमोबेश यही स्थिति है।
-राम प्रकाश टंडन, किसान राजनांदगांव
शक्ति सिंह ठाकुर,
महासचिव, सेंट्रल बैंक प्रदेश कर्मचारी संघ