पान ठेलों पर चुनावी चर्चा
पान ठेलों में चुनावी चर्चा का अलग रंग ही दिखाई देता है। यहां चुनावी चर्चा करने वाले सभी एक-दूसरे को अच्छे से जानते हैं। यही वजह है कि पार्टी विशेष का पक्ष रखने वाले के सामने उसकी पार्टी की हार की चर्चा कर मजे भी लेते हैं। इस दौरान कही बार हंसी मजाक के साथ हल्का नाराजगी का भी रंग दिखाई देता है। वोटरों का मूड भांपने में एड़ी-चोटी का जोर
वोटरों की चुप्पी नेताओं के लिए सिरदर्द बन गई है। नुक्कड़ सभाओं में कुछ नेता भीड़ न जुटने से पशोपेश की स्थिति नजर आ रहे हैं। मतदान के लिए महज तीन दिन का समय रह गया है। कोई भी अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है। राजनीतिक दलों को मतदाताओं का मूड भांपने में एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। नतीजे का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा है। हालांकि सभी प्रत्याशी अपनी स्थिति मजबूत बताने में पीछे नहीं हैं।
हमारे पास तो कोई वोट मांगने नहीं आया
ट्रेन, बस, चौक-चौराहे, पान दुकानों और होटलों में चुनावी चर्चा का दौर जारी है। शुक्रवार को दुर्ग से रायपुर के बीच चलने वाली लोकल ट्रेन में यात्रियों के बीच देश और प्रदेश की सीटों पर चर्चा होती रहती है। छह यात्री आमने-सामने की सीट पर बैठकर रायपुर जा रहे हैं। इनमें से कोई व्यापारी है, कोई मालिक है, तो कोई नौकरी, लेकिन सभी चुनावी चर्चा में बराबरी से हिस्सा ले रहे हैं। कुछ सीट में जीत-हार की बात पर हां में हां मिलते हैं, तो कुछ सीटों में मनभेद नजर आता है। सभी का अपना तर्क रहता है। चुनावी चर्चा के दौरान इसमें नाराजगी के साथ-साथ विश्वास और अतिविश्वास तीनों दिखाई देता है। मतदाता भी चालाक है। जब वो देखते है कि सामने वाला व्यक्ति किसी राजनीतिक दल से संबंध रखता है, तो उसे गोलमोल जवाब देते हैं। वहीं आपसी चर्चा के दौरान मतदाता इस बात को लेकर नाराज दिखते हैं कि उनके क्षेत्र में अब तक कोई भी प्रत्याशी वोट मांगने नहीं आया है। फिर इस बात पर चर्चा शुरू हो जाती है कि लोकसभा, विधानसभा और पार्षद चुनाव में प्रचार का तरीका अलग-अलग होता है।