रायपुर

Euro Surgeons: किडनी ट्रांसप्लांट की योजना को बड़ा झटका, डीकेएस में दो यूरो सर्जन ने दिया इस्तीफा

Euro Surgeons: स्वास्थ्य विभाग के एक आदेश के बाद मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टर लगातार नौकरी छोड़ रहे हैं। यहां एक नेफ्रोलॉजिस्ट है, जो संविदा में है।

रायपुरNov 04, 2024 / 11:06 am

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Euro surgeons: डीकेएस में दो यूरो सर्जन के इस्तीफे से किडनी ट्रांसप्लांट की योजना को बड़ा झटका लगा है। प्रदेश में केवल डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट की संभावना है। ये संभावना भी अब धूमिल हो गई है। स्वास्थ्य विभाग के एक आदेश के बाद मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टर लगातार नौकरी छोड़ रहे हैं। यहां एक नेफ्रोलॉजिस्ट है, जो संविदा में है। उन्होंने इस्तीफे का कोई नोटिस तो नहीं दिया है, लेकिन शपथपत्र वाले मामले में वे कब अस्पताल छोड़कर चले जाए, कहा नहीं जा सकता।
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अभी तक की स्थिति में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए विशेषज्ञ तो उपलब्ध थे, लेकिन दक्ष नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ, जरूरी उपकरण नहीं होने के कारण ट्रांसप्लांट शुरू नहीं हो पा रहा था। जब यूरो सर्जन ही चले जाएंगे, वे भी 6 साल से सेवा दे रहे डॉक्टर तो दिक्कत तो आएगी ही। जरूरतमंद मरीज ट्रांसप्लांट के लिए एम्स के अलावा बड़े निजी अस्पतालों की ओर रूख कर रहे हैं। प्रदेश में ऑर्गन डोनेशन पॉलिसी लागू हो चुकी है। अब कैडेवर यानी डेड बॉडी से भी ऑर्गन निकाले जा रहे हैं।
इसके बावजूद किसी भी सरकारी अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू नहीं होने से मरीजों को झटका लगा है। प्रदेश का गठन हुए 24 साल पूरे हो गए हैं। वहीं डीकेएस सुपर स्पेश्यालिटी अस्पताल शुरू हुए 6 साल बीत चुके हैं। बावजूद किडनी ट्रांसप्लांट की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। वहीं स्टेट ऑर्गन ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन यानी सोटो के पास दो दर्जन से ज्यादा अर्जियां है, जिसमें किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत है। साेटो ही मरीजों की अर्जी के बाद तय करता है कि किसका ट्रांसप्लांट किस अस्पताल में किया जाना है।

छह करोड़ फंड मिल चुके हैं उपकरण कब आएंगे पता नहीं

सितंबर में राज्य सरकार ने लीवर व किडनी ट्रांसप्लांट के जरूरी उपकरण के लिए 6 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। उपकरण कब तक आएंगे, इस बारे में अधिकारी कुछ कहने से बच रहे हैं। हालांकि कहा जा रहा है कि सीजीएमएससी इसके लिए टेंडर करेगा। बड़ा सवाल ये है कि उपकरण के आने से क्या होगा, जब ट्रांसप्लांट करने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं होंगे। अब जब विशेषज्ञ थे, तब न उपकरण आया और न ही दक्ष स्टाफ। अब यूरो सर्जन के जाने के बाद उपकरण खरीदे जाएंगे।

बोन मेरो ट्रांसप्लांट केवल कल्पना ही, विशेषज्ञ नहीं

दूसरी ओर डीकेएस में बोन मेरो ट्रांसप्लांट के लिए भी जरूरी विशेषज्ञ, लैब व कुशल स्टाफ नहीं है। कुछ समय पहले हिमेटोलॉजिस्ट सेवाएं दे रहे थे, लेकिन अब वे इस्तीफे देकर जा चुके हैंं। वे आने का प्रयास करते रहे, लेकिन अस्पताल में ओपीडी के लिए जगह ही नहीं है। वार्ड भी पैके है। ऐसे में ब्लड कैंसर के मरीजों के लिए वार्ड की भी जरूरत होगी। राजधानी के सीनियर बाेन मेरो एक्सपर्ट डॉ. विकास गोयल के अनुसार बीएमटी के लिए डॉक्टर के साथ कुशल स्टाफ व बेहतरीन लैब की जरूरत होती है। राजधानी में तीन अस्पतालों में अभी बीएमटी हो रहा है। आने वाले दिनों में इसकी संख्या बढ़ने की संभावना है।
डीकेएस अस्पताल उप अधीक्षक हेमंत शर्मा ने कहा किडनी ट्रांसप्लांट के लिए जरूरी स्टाफ है, लेकिन उपकरण की कमी है। इसे दूर करने के लिए शासन पहले ही 6 करोड़ का फंड दिया है। यूरो सर्जन जरूर इस्तीफे दिए हैं, उनकी जगह दूसरे विशेषज्ञ लाने का प्रयास किया जाएगा।
संजीवनी कैंसर अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. युसूफ मेमन ने कहा बोन मेरो ट्रांसप्लांट के लिए हिमेटोलॉजिस्ट के साथ स्किल्ड नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ की जरूरत होती है। साथ ही एडवांस लैब भी चाहिए। ट्रांसप्लांट होने के बाद मरीजों की उच्च स्तरीय फॉलोअप भी जरूरी है।

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