रायपुर

रोज की उलझनों में एनर्जी मत गंवाइए, कछुए की तरह बिहेव कीजिए

रोज की उलझनों में एनर्जी मत गंवाइए, कछुए की तरह बिहेव कीजिए

रायपुरSep 29, 2018 / 07:39 pm

चंदू निर्मलकर

रोज की उलझनों में एनर्जी मत गंवाइए, कछुए की तरह बिहेव कीजिए

रायपुर. प्रजापिता ब्रह्माकुमारी की ओर से इनडोर स्टेडियम में ‘वाह जिंदगी वाहÓ कार्यक्रम आयोजित किया गया। शाम साढ़े छह बजे शुरू हुए आयोजन में लाइफ मैनेजमेंट एक्सपर्ट बीके शिवानी दीदी और अभिनेता सुरेश ओबेरॉय ने लोगों को जिंदगी की उलझनों से दूर रहकर बेहतर जीवन जीने के टिप्स दिए। उन्हें सुनने के लिए इतने लोग आए थे कि पूरा स्टेडियम पैक रहा। स्टेडियम परिसर में लगे प्रोजेक्टर के सामने बड़ी संख्या में रायपुराइट्स बैठे थे। कार्यक्रम में सभी को मेडिटेशन कराया गया।
इससे होने वाले फायदों को बताया और रोजाना इसे रूटीन में शामिल करने के लिए प्रेरित किया। मालूम हो कि शिवानी दीदी का यह चौथा और ओबेराय का दूसरा रायपुर प्रवास है। कार्यक्रम में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, मेयर प्रमोद दुबे, आरडीए अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव, अजय सिंह, कमला दीदी, हेमलता, मंजू समेत हजारों की संख्या में ऑडियंस मौजूद थी।
लोगों की कमियों को नहीं, खूबियों को देखें, दूसरों की सफलता से खुश हों: शिवानी दीदी
शिवानी दीदी ने कहा कि हम अक्सर दूसरों को बदलने की सोचते हैं। अगर वे हमारी राय नहीं माने तो निराश हो जाते हैं। दरअसल हम अपने संस्कार के मुताबिक उन्हें राय देते हैं, इसलिए वे नहीं मानते। दूर और बाहर बैठे लोगों से उन्होंने कहा कि जब ज्ञान को जीवन में उतारना हो तो कहां बैठे हैं ये मायने नहीं रखता, हमारा मन कहां बैठा है यह मायने रखता है। हमें इतना सुंदर जीवन मिला है, बजाय शुक्रिया के हम कोसते फिरते हैं। जब लो एनर्जी के शब्द बार-बार उच्चारित करेंगे तो हमारे मन में उसका वैसा ही असर पड़ता है। ज्ञान और मेडिटेशन हमें चिंतन सिखाता है। लोगों की कमियों को नहीं, बल्कि उनकी खूबियों को देखें। दूसरों की सफलता में खुश रहना सीखिए। जिंदगी उलझनों में फंसने के लिए नहीं है। हम रोज कुछ न कुछ उलझन में फंसकर अपनी एनर्जी बर्बाद कर देते हैं। उस कछुए से सीखिए जो उलझन आने पर खुद को समेट लेता है। ठीक ऐसे ही हमको बनना है। बात को बिगाडऩे की बजाय बचें।
सिग्नल पर लालबत्ती देखकर आ जाता था गुस्सा : ओबेरॉय
अभिनेता सुरेश ओबेराय ने रायपुर को नमस्कार से अपनी बात शुरू की। कहा कि मेरी जिंदगी अव्यवस्थित हो गई थी, इतनी कि हर बात में बहाने बनाया करता था। इधर डायरेक्टर मुझे स्क्रीप्ट समझा रहा होता था, उधर मेरा ध्यान कहीं और चला जाता था। मैं थोड़ी-थोड़ी बातों में गुस्सा होने लगा था। अगर सिग्नल में लालबत्ती भी दिख जाए तो सोचता था कि मेरे ही टाइम ऐसा क्यों। मां बोलती थी कि मन को जीत तो जग को जीत लेगा। मैंने झाड़-फुंक का सहारा लिया। चादरें चढ़ाई। लेकिन संस्कार बदलना मुश्किल था। टीवी पर शिवानी दीदी का प्रोग्राम देखा और उसे नोट करने लगा। मेरा नजरिया बदल गया। खाने-पीने का काफी शौक था। सबसे पहले वेजेटेरियन हुआ। लगा कि 50 प्रतिशत मन को जीत लिया और 50 फीसदी जग।
अध्यात्म कोई अलग रास्ता नहीं है
शिवानी दीदी और सुरेश ओबेराय ने विधानसभा रोड स्थित शांति सरोवर में ‘पत्रिकाÓ से विशेष बातचीत की। इस दौरान शिवानी दीदी ने कहा कि लोग अध्यात्म को अलग फील्ड समझते हैं, जबकि ये कोई अलग रास्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि हम दिनभर इतनी मेहनत करते हैं, लेकिन अपने मन को शांति देने के लिए आधा घण्टा भी नहीं निकाल पाते। किसी मोबाइल को चलाने के लिए उसको चार्ज तो करना ही पड़ेगा।
एक्टिंग छोड़ी नहीं है
ओबेरॉय ने कहा कि मैंने एक्टिंग छोड़ी नहीं है। मेरी एक फिल्म आ रही है मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी। इसमें मैंने पिता का रोल किया है। उस फील्ड से हूँ जहां रौशनी, चकाचौंध और ग्लैमर है। लेकिन आपको बता दूं कि उससे

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