हकीकत यह है कि जुलाई, अगस्त और सितंबर में जब जिलों में मौतें ज्यादा हो रही थीं तो जिम्मेदारों ने राज्य स्वास्थ्य विभाग को कम मौतों की रिपोर्ट भेजीं। अब जब मौतों के आंकड़े कम हो रहे हैं तो पुरानी मौतों की सूचनाएं धीरे-धीरे कर जारी की जा रहीं हैं। स्पष्ट है कि वर्तमान में रोजाना 31 मौतें नहीं हो रही हैं।
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दरअसल, बैक डेट में हुई मौतों को आज होने वाली मौतों के साथ जोड़ा जा रहा है। अक्टूबर में एक भी दिन 24 घंटे में 16 से अधिक मौतें नहीं हुईं। 8 दिन तो आंकड़े दहाई के पार नहीं गए। विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंकड़े आज के समय में लोगों के अंदर भय पैदा करने वाले हैं, तब जब कोरोना संक्रमण घटता दिख रहा है।
‘विलंब से आई सूचना, क्यों लिखना पड़ रहा
‘पत्रिका’ ने 24 सितंबर को इस गड़बड़ी को उजागर किया, जिसके बाद अब तक रोजाना पिछले मौतों की डेटा धीरे-धीरे कर जिले जारी करते आ रहे हैं। मगर, बड़ा सवाल यह है कि एक दिन में ही सारी बैक डेट में हुई मौतों की जानकारी क्यों नहीं जारी कर दी जाती, ताकी ‘विलंब से आई सूचना’ लिखने की जरुरत ही न पड़े। स्थिति तो यह है कि स्वास्थ्य विभाग के शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारी अपने ही सीएमएचओ पर समय पर मौत की सूचनाएं देने का दबाव तक नहीं बना पा रहे हैं।
जिलों से ही जब मौत की जानकारी समय पर नहीं आ रही तो राज्य को कैसे मालूम चलेगा मौत कब हुई, किसकी हुई। मुझे लिखना पड़ रहा है कि सूचनाएं विलंब से मिली। अधिकांश मौतें जुलाई और अगस्त की ही हैं।
-डॉ. सुभाष पांडेय, प्रवक्ता एवं संभागीय संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य विभाग
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