डॉनल्ड ट्रंप के पहले ही राष्ट्रपति काल में अप्रवासन नीतियां सख्त हो गई थीं, खासकर एच1बी वीजा धारकों के लिए, जिनमें अधिकांश उच्च-स्किल्ड भारतीय पेशेवर शामिल हैं। इन नीतियों ने अमरीका में काम और निवास प्रक्रिया को जटिल बना दिया। भारतीय आईटी पेशेवरों को वीजा आवेदनों में अस्वीकृति या दस्तावेज प्रमाण की मांग (आरएफई) जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। ट्रंप प्रशासन ने अधिक सैलरी पाने वाले या अमरीकी संस्थानों से डिग्री धारक आवेदकों को प्राथमिकता देने का नियम लागू किया था। इसका दुष्प्रभाव भारतीय पेशेवरों पर पड़ा, क्योंकि पेशेवर सीधे कंपनियों से जुडऩे की जगह कम वेतन वाली आउटसोर्सिंग कंपनियों के माध्यम से जुडऩे को मजबूर हुए।
इसके अलावा, रोजगार-आधारित ग्रीन कार्ड के लिए देश-विशेष सीमा और ट्रंप-कालीन धीमी प्रक्रियाओं ने भारतीय नागरिकों के लिए अनिश्चितता बढ़ा दी। 2020 में कोरोना महामारी के दौरान, ट्रंप ने एच1बी वीजा जारी करने पर अस्थायी रोक लगाई, जिससे भारतीय श्रमिक और उनके परिवार प्रभावित हुए। हालांकि, 2021 में बाइडन के सत्ता में आने पर इन नीतियों में कुछ नरमी दी गई, जिससे एच1बी आवेदकों को राहत मिली। फिर भी भारतीय नागरिक ग्रीन कार्ड बैकलॉग जैसी गंभीर चुनौतियों से जूझ रहे हैं, अप्रवासन प्रणाली में सुधार की सख्त जरूरत है।
ट्रंप को दक्षिणपंथी कंजर्वेटिव समूहों का समर्थन मिला है। इनमें से कुछ इतने उग्र हैं, जिन्होंने 6 जनवरी, 2021 को यूएस कैपिटल पर हमला किया, जो अब अमरीका के इतिहास में एक ‘काला धब्बा’ बन गया है। स्टीव बैनन (पूर्व ट्रंप व्हाइट हाउस के चीफ स्ट्रैटेजिस्ट) एक बहुत ही विवादास्पद व्यक्ति हैं, जिन्हें राष्ट्रपति बाइडन के कार्यकाल में कांग्रेस की अवमानना के आरोप में जेल भेजा गया था। बैनन विदेशी नागरिकों को एच1बी वीजा और ग्रीन कार्ड देने का विरोध करते हैं। इनमें भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा है। बैनन का कहना है कि इससे अमरीकी श्रमिकों को नुकसान पहुंचता है और यह बड़ी टेक कंपनियों के लिए ‘सस्ते विदेशी श्रमिकों’ को नौकरी पर रखने का मौका बन जाता है, जिससे वे अधिक पैसा बचाती हैं।
दूसरी ओर, ट्रंप के नए प्रिय और दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क हैं, जो खुद दक्षिण अफ्रीका से अप्रवासी हैं। मस्क, कुशल अप्रवासी श्रमिकों, विशेष रूप से एच1बी वीजा का समर्थन करते हैं। मस्क का मानना है कि अमरीका को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने से लाभ होता है, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्रों में। मस्क की सभी कंपनियों में एच1बी वीजा पाने वाले कर्मचारी वरिष्ठों की भूमिकाओं में भी हैं। उन्हें भविष्य में ऐसे अधिक पेशेवरों की जरूरत भी पड़ेगी।
सोशल मीडिया पर अभी जिस तरह से अटकलें और डर फैलाने वाली जानकारियां फैल रही हैं उससे भारत के उन कुशल श्रमिकों में खलबली मची हुई है, जो पिछले कई वर्षों से अपनी ग्रीन कार्ड की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यदि ट्रंप अपने दक्षिणपंथी कंजर्वेटिव समूहों का समर्थन करते हुए उनके बहुप्रतीक्षित ‘प्रोजेक्ट 2025’ को सक्रिय करते हैं तो उदारवादी, आगे सोचने वाले अमरीकी और बाकी दुनिया को न केवल अगले चार वर्षों, बल्कि आने वाली दशकों में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ट्रंप के अगले चार सालों को अधिकांश लोग ‘सतर्क रूप से आशावादी, लेकिन अराजकता की आशंका’ के रूप में देखते हैं, जो विश्व अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।
एक बात और है कि ट्रंप ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अमरीकी में कुशल श्रमिकों की भारी जरूरत है, जो कानूनी रूप से अमरीका में आकर अध्ययन/काम करने की योजना बना रहे हैं, उन्हें मौका देना चाहिए। लेकिन अधिकांश लोगों की चिंता यह है कि चरमपंथी विचारक जैसे स्टीव बैनन, स्टीफन मिलर, काश पटेल आदि का ट्रंप पर काफी प्रभाव है, जिससे यह आशंका है कि अमरीका में विचारधाराओं का संघर्ष और बढ़ सकता है और इसका विश्व विशेषकर भारत और चीन पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है, क्योंकि इन दोनों देशों के सबसे ज्यादा लोग एच1बी या ग्रीन कार्ड वेटिंग लिस्ट में हैं।
अमरीका में ग्रीन कार्ड पाने वालों में केवल 14% ही अपनी शिक्षा और अनुभव के बाद प्राप्त कर पाते हैं, जबकि 86% को मौका ही नहीं मिलता है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के देशों में सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी द्वारा 2020 में किए गए डेटा विश्लेषण के अनुसार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (स्टेम डिग्री) विषयों में स्नातक करने वाले छात्रों की संख्या केवल 20% है। हर साल अमरीकी विश्वविद्यालयों से लगभग 8 लाख स्टेम डिग्री धारक निकलते हैं, जबकि चीन में यह संख्या 41% (35 लाख) और भारत में 30% (25.5 लाख) है। ऐसे में इनकी जरूरत भी पड़ेगी।
डॉनल्ड ट्रंप के वादों पर नजर डालें तो उनकी छवि अच्छी नहीं कही जाएगी। वो जो कहते हैं, अपने वादों पर खरे नहीं उतरते हैं, जैसे कि मेक्सिको के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर मुश्किल से कोई दीवार बनी है और इसके लिए मेक्सिको ने एक पैसा भी नहीं चुकाया, जबकि ट्रंप ने दावा किया था कि यह होगा। ट्रंप ने कई बार अपनी नीतियों को बदलने की कोशिश की, लेकिन इन परिवर्तनों से आम जनता को वह लाभ नहीं मिला, जिसका वादा किया गया था। अब हम सबकी नजर ट्रंप के आगामी फैसलों पर है और उम्मीद करते हैं कि उनका निर्णय, भारत, अमरीका और पूरी दुनिया के लिए सकारात्मक और सुधारात्मक हो।