scriptपत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – अमृत काल करे मृत्यु मुक्त | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari Special Article On 21st January 2025 Amrit Kaal Makes Us Free From Death | Patrika News
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पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – अमृत काल करे मृत्यु मुक्त

कुछ कार्य जीवन में योजना बनाकर किए जाते हैं, किन्तु कुछ कार्य जीवनशैली के कारण अपना स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं। आजकल दिव्यता किसी की भी शोभा नहीं बनती और जहां दिखाई जाती है, अधिकांश नकली, भ्रमित करने को या धन बटोरने को।

जयपुरJan 21, 2025 / 09:09 am

Gulab Kothari

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गुलाब कोठारी

कुछ कार्य जीवन में योजना बनाकर किए जाते हैं, किन्तु कुछ कार्य जीवनशैली के कारण अपना स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं। आजकल दिव्यता किसी की भी शोभा नहीं बनती और जहां दिखाई जाती है, अधिकांश नकली, भ्रमित करने को या धन बटोरने को। कलियुग में आसुरी शक्तियां सारी तपस्या और श्रम ‘भस्मासुर’ बनने के लिए ही करती है। शिक्षा विभाग में तबादलों के लिए शिक्षकों से रिश्वत ली जाती है, पुलिस विभाग में हर थाने-जिलों की रेट तय है-धन स्वयं पुलिस वाले ही लेते हैं, कमाई के बड़े पदों पर तो करोड़ों की नीलामी होती है। भर्ती में माहौल खुल्लम खुल्ला है। राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) में सहजता से घुस गए लोग। भर्ती के दरवाजे सदा खुले ही रहते थे। नीचे की भर्तियां रोकने के लिए ही पेपर लीक जैसे मार्ग निकलते हैं, ऊपर की कोई भर्ती रुकी या संविदा पर रखने की नौबत आई हो, ऐसा उदाहरण नहीं है।
सरकार के काम करने की व्यवस्था ही ऐसी है कि आगे-आगे सड़कें बनती जाती हैं, पीछे-पीछे गड्ढे बनते जाते हैं। नालियां काटने की स्वीकृति मिलती जाती है। पत्थर की सड़कें उखाड़ दी गईं क्योंकि वहां पुन: निर्माण की संभावना नहीं होती। सीमेंट भी फैक्ट्रियों से -फैक्ट्री रेट पर, बिना कर टैक्स- खरीदी जा सकती है। पूरा माल एक साथ, एक भाव। सरकारें सैकड़ों तरह का सामान निविदाओं के माध्यम से खरीदती हैं जो एक साथ पूरे कारखाने के माल रूप में खरीदा जा सकता है। न तो नकली माल ही मिलेगा, न ही ज्यादा लागत आएगी। समय तो पूरा ही बच सकता है। बस दलाली नहीं मिलेगी बार-बार। इस प्रकार की कार्यशैली अभावग्रस्त लोगों का पेट तो भर देती है किन्तु करोड़ों लोगों की जान मुसीबत में पड़ जाती है। इसीलिए जनता और अफसर एक-दूसरे के हित-रक्षक नहीं कहे जाते। जनता कोसती है, त्रस्त होकर शाप देती रहती है,अफसर ठहाके लगाते रहते हैं। लोकतंत्र किसके लिए?

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पिछले कुछ महीनों में जयपुर शहर के ट्रैफिक जाम के समाचारों से अखबार अटे पड़े थे। त्योहारों का मौसम, नया साल, छुट्टियां, पर्यटक, विशिष्ट जनों के प्रवास की रेलमपेल, जिम्मेदारों का सुख की नींद सोना जैसे अनेक कारण समाहित हैं इस परिस्थिति की जड़ में। आज तक भी समाहित हैं क्योंकि मौत के इस दैनिक संघर्ष से किसी को कोई वास्ता ही नहीं है। मानो हम परदेश में रह रहे हैं। नेता मैं चुनता हूं, अफसर- न्यायाधीशों को वेतन मैं देता हूं। जनता के नौकर हैं, काम रिश्वत देने वाले का पहले करते हैं मेरा बाद में।
समय के साथ आबादी बढ़ रही है। जयपुर तीन सौ वर्षों में कहां से कहां चला गया। चार दीवारी तोड़कर नया दरवाजा निकालना पड़ गया। कोई अधिकारी शायद यह नहीं समझा पाए कि विद्याधर जी ने यहां गेट क्यों नहीं बनवाया। हमने तो तोड़ दिया। मैट्रो लाने के चक्कर में मैंने तो तोड़ दिए सब कुछ जो अब दुबारा नहीं बन सकते। सत्ता का अहंकार और त्रियाहठ दोनों ही कानून से ऊपर होते हैं। क्या सत्ता बदली आबादी को थामने में सफल हो सकती है, क्या शहर के गली-मोहल्लों-सड़कों को चौड़ा कर सकती है? वहां तो समस्या पर विचार ही कुछ दूसरी दिशा में होता है।
सरकार अपना स्वार्थ त्यागकर अतिक्रमण तो हटवा सकती है। क्यों सरकारी प्रयास प्रभावी नहीं होते। अधिकारी नाव पर बैठने से पहले नाव में छेद करके चढ़ता है। बड़ी रिश्वत देकर पोस्टिंग लेता है। उसे लागत वसूलनी होती है, कमाना होता है। वरना, क्या मजाल कि उच्च न्यायालय के दर्जनों आदेशों के बाद भी चारदीवारी से अतिक्रमण नहीं हटे। फर्जी पार्किंग स्थल बनते-उठते रहते हैं। नए बहुमंजिले भवन बनते जा रहे हैं जिनमें पार्किंग की व्यवस्था संभव ही नहीं है। किस जोन कमिश्नर को सजा हुई? किस मंत्री और अधिकारी के मन में ग्लानि हुई? किसने चारदीवारी के पुनर्निर्माण का संकल्प हाथ में लिया? है कोई चिंतित?
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सड़क, वाहन, यातायात, जनता सबको एक साथ सामने रखकर दृष्टिपात करें। क्या दिखाई देता है। पुलिस कहां व्यस्त दिखाई पड़ती है, कैमरे कितने काम करते हैं, वीआइपी के लिए कितनी बार ट्रैफिक लाइटें बन्द की जाती हैं। किस-किस दबंग के प्रभाव में सड़कें, सर्कल, रोडकट, बन्द किए जाते हैं? सभी बेशर्म और निर्लज्ज होते जान पड़ते हैं। आज कोई बुजुर्ग, बीमार, गोद में बच्चा लिए मां जौहरी बाजार में कहीं सड़क पार करने की जोखिम नहीं उठा सकते। एक भी ट्रैफिक लाइट नहीं है। ट्रैफिक पलभर को नहीं रुकता। जिसके भाग्य में मौत लिखी हो वह कोशिश करके देख ले।
फुटपाथ पर अतिक्रमण की बन्धी (चौथ वसूली) कौन नहीं खाता। पैदल कहां चलेगा व्यक्ति-सड़क पर? सड़कें सदा छोटी ही पड़ेंगी। क्या एक आदेश जारी होने के बाद अतिक्रमण संभव है? क्या अधिकारी की कमाई मौत के संघर्ष से बड़ी है? चारदीवारी का हाल देखकर तो यमराज भी कुछ देर ठहर जाएंगे। चांदपोल-रामगंज-जौहरी बाजार-घाटगेट बाजार-खंदे कहीं भी देख लो। लोगों को चलने की जगह ही नहीं छोड़ रखी। एक बार इनको खाली करवाकर देख लो, सड़कों का भार कितना हल्का हो जाएगा। करने की दृढ़ इच्छा शक्ति चाहिए।
बाजारों में यातायात व्यवस्था और पार्किंग को व्यवस्थित करना पड़ेगा। बाजार के समय में घरों की कार पार्किंग नहीं होनी चाहिए। दुकानदारों की कारों के मासिक पास बनने चाहिए। ग्राहकों की कारों पर प्रवेश शुल्क लगाया जा सकता है। चारदीवारी के बाजारों को चौपहिया वाहन मुक्त करने पर भी विचार किया जा सकता है। दो पहिया रिक्शा-ऑटो के पार्किंग स्थल पर चार्जेज भी लिखा होना चाहिए जहां ठेकेदारोें के पास रसीद बुक्स भी हों। पार्किंग यातायात में बाधक न हो, यह जिम्मेदारी यातायात पुलिस की होनी चाहिए। सरकार प्रत्येक शहर के मुख्य बाजारों में समान व्यवस्था लागू करे। जोधपुर, कोटा, बीकानेर, उदयपुर जैसे बड़े शहरों की चार दीवारी में कानून दलालों के हवाले किया हुआ है। जन-जन-त्रस्त है। डर किसी को नहीं है।
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वोट की राजनीति ने यातायात का गला घोंट दिया। प्रत्येक मोहल्ले में विधायकों ने लोहे के गेट बनवा दिए। मोहल्ले पर शहर के अन्य लोगों का कोई अधिकार नहीं उधर जाने का। निजी सम्पत्ति की तरह रात को गेट पर ताला और चौकीदार तैनात। ऐसी हजारों गलियों का ट्रैफिक मुख्य मार्गों पर आ गया। सड़कें छोटी पड़ गईं। मोहल्ले वाले नगर सेठ हो गए। रात को एम्बुलेंस भी छोटा मार्ग नहीं पकड़ सकती, न ही आग लगने पर दमकलें पहुंच सकती हैं।
सरकारी दूरदर्शिता और कामचोरी का एक और बड़ा उदाहरण। जयपुर में यूरोप की तर्ज पर पत्थर के खण्डों की सड़कें थी जिनको हजारों साल भी ठीक करने की जरूरत नहीं थी। बड़े-बड़े चूहे खा-गए। आज गलियां नर्क जैसा बन पड़ी हैं। स्वच्छ भारत नगर परिषदों के कार्यालय तक भी हो तो काफी होगा। हर बार सड़क की मरम्मत के नाम पर डामर बिछा दिया जाता है। पुराना उखाड़ते नहीं। आज गलियों में 4-5 फीट तक सड़कें ऊंची और नालियां नीची हो गई। कैसे सफाई होगी! घरों के दरवाजे नीचे चले गए, बाढ़ में डूबने लग गए जो एक नेत्रहीन भी जान सकता है। अफसर नि:स्पृह है जनता के कष्टों से। गलियां आज भी बन्द नहीं हैं। जन सुविधाएं बना सकते हैं।
सड़कें इतनी ऊंची हो गई कि दोनों किनारे नालियों की ओर झुक गए। कारें सुरक्षित कैसे चले। दोनों ओर अतिक्रमण के असुर। सरकार को बीड़ा उठाना होगा। गलियों की सड़कों को मूल रूप देकर, अतिक्रमण मुक्त करना आवश्यक हो गया है। आज गलियों का ट्रैफिक भी मुख्य मार्गों पर आ गया है। मुख्यमंत्री के अलावा कोई नहीं रोक सकता। चाहे तो पुलिस कमिश्नरों से सहयोग ले सकते हैं। कानून में जिम्मेदार को तुरन्त सजा के प्रावधान भी अनिवार्य करने होंगे।
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