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जागे नहीं तो भुगतने पड़ सकते हैं दुष्परिणाम

इंटरनेट की दुनिया के इस आपराधिक प्रभाव का असर बच्चों की मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ रहा है। विशेष रूप से विकासशील देशों में यह एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आयी है, जहां इस प्रकार के उत्पीडन के अधिकांश मामले रिपोर्ट ही नहीं किए जाते हैं।

जयपुरJan 23, 2025 / 08:44 pm

Sharad Sharma

रिपोर्ट में बताया गया है कि हर सेकंड में 10 बच्चे ऑनलाइन यौन उत्पीडऩ का शिकार हो रहे हैं। वहीं चाइल्डगेट के अध्ययन में वर्ष 2024 के अंत में सालाना यौन उत्पीडऩ के शिकार बच्चों की संख्या का अनुमान 30 करोड़ लगाया गया है।


इंटरनेट पर अक्सर बच्चे यौन उत्पीडऩ का शिकार हो जाते हैं और अभिभावकों को इसकी भनक तक नहीं लग पाती। जैसे—जैसे हम इस सुविधा पर आश्रित हुए, वैसे—वैसे इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। एक ताजा अध्ययन इस चिंता को और बढ़ाने वाला है जिसमें कहा गया है कि दुनिया भर में हर 12 में से एक बच्चा किसी ने किसी रूप में ऑनलाइन यौन उत्पीडऩ का शिकार हो रहा है। एडिनबर्ग विश्वविद्यालय और चीन कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के इस अध्ययन में 2010 से 2023 तक के 123 अध्ययनों का विश्लेषण कर इस रिपोर्ट में बताया गया है कि हर सेकंड में 10 बच्चे ऑनलाइन यौन उत्पीडऩ का शिकार हो रहे हैं। वहीं चाइल्डगेट के अध्ययन में वर्ष 2024 के अंत में सालाना यौन उत्पीडऩ के शिकार बच्चों की संख्या का अनुमान 30 करोड़ लगाया गया है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी भी देश के भौतिक, आर्थिक या तकनीकी विकास में इंटरनेट का योगदान सबसे महत्वपूर्ण है। आज आपसी सम्पर्क, खरीदारी, लेखन, नवनिर्माण, मनोरंजन सहित नवाचार के विभिन्न साधनों में इंटरनेट एक प्रमुख जरिया बन गया है। लेकिन यह जिस तरह से अपराध का मंच भी बनता जा रहा है वह भविष्य के खतरे की ओर आगाह करने वाला है। इंटरनेट की दुनिया के इस आपराधिक प्रभाव का असर बच्चों की मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ रहा है। विशेष रूप से विकासशील देशों में यह एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आयी है, जहां इस प्रकार के उत्पीडन के अधिकांश मामले रिपोर्ट ही नहीं किए जाते हैं।
बच्चे ही नहीं वयस्क भी इंटरनेट के शिकंजे में फंसने लगे हैं। लोग मानसिक तनाव, रिश्तों में समस्या या अन्य परेशानियों में अब परिवार या मित्रों की बजाय इंटरनेट का सहारा लेने लगे हैं। सोशल मीडिया की बढ़ती इस लत को फबिंग कहा जाता है, यह आदत व्यक्ति की वास्तविक संवाद से दूर कर असामाजिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा दे रही है। इस दुनिया की चकाचौंध का असर ऐसा है कि कभी अपनों को करीब लाने वाली ये सुविधा अब दूरी बढ़ाने का कारण भी बन गई है। बच्चे अपने परिजनों से ज्यादा इस दुनिया पर भरोसा करने लगे हैं।

बच्चों के सोशल मीडिया के उपयोग को लेकर कुछ देशों ने कानून भी बनाए है लेकिन ये नाकाफी साबित हो रहे हैं। आज जरुरत इंटरनेट के दुरुपयोग से मुकाबले के लिए वैश्विक स्तर पर एक संयुक्त प्रयास हों। बच्चों और व्यस्कों में एक लत की तरह घुसपैठ कर चुके इंटरनेट पर समय रहते लगाम नहीं लगाई गई तो परिणाम भयावह होते देर नहीं लगने वाली।

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