scriptFreedom stories 2023: अंग्रेजों ने कटवा दिया वह जामुन का पेड़ जहां आजाद शहीद हुए | The Jamun tree where Azad was murdered was destroyed by the British | Patrika News
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Freedom stories 2023: अंग्रेजों ने कटवा दिया वह जामुन का पेड़ जहां आजाद शहीद हुए

Freedom stories 2023: प्रयागराज के कटरा मुहल्ले में एक पुराने से मकान में महज डेढ़ रुपया माह के कमरे में किराया पर आजाद रह रहे थे। उस समय उनके पास साईकिल हुआ करती थी जो क्रांतिकारियों के आवागमन के लिए प्रयोग में आती थी।

प्रयागराजAug 14, 2023 / 10:17 pm

Markandey Pandey

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Freedom stories 2023: प्रयागराज के कटरा मुहल्ले में एक पुराने से मकान में महज डेढ़ रुपया माह के कमरे में किराया पर आजाद रह रहे थे। उस समय उनके पास साईकिल हुआ करती थी जो क्रांतिकारियों के आवागमन के लिए प्रयोग में आती थी। वह साईकिल अंग्रेजों ने जब्त कर लिया और जामुन के पेड़ को कटवा दिया था जिसके नीचे आजाद शहीद हुए थे। क्यों कि लोग वहां पूजा पाठ करने लगे थे। रेलवे में कार्यरत और आजाद सहित क्रांतिकारियों की स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए आजाद हिंद फाउंडेशन चलाने वाले समाजसेवी राजू मिश्र बताते हैं कि आजाद किसी राजनैतिक दल से नहीं थे, ज्यादातर क्रांतिकारी किसी दल से नहीं होकर क्रांति के मार्ग पर थे, इसलिए शायद इतिहास में उनके साथ न्याय भी नहीं हो पाया।

आधुनिक इतिहास में शोध पूरी कर चुके अनुराग पाण्डेय कहते हैं कि आनंद भवन से तमतमाए हुए आजाद निकले थे, गमछे से पसीना पोछा और गाली देते हुए साईकिल उठाए और चल दिए। किसको गाली दे रहे थे, अंदर किसके साथ आजाद ने गाली-गलौच किया था। कुछ क्रांतिकारियों का मुकदमा लडऩे के लिए उनको पैसे की जरुरत थी। वह सीधे अल्फ्रेड पार्क जिसे कंपनी गार्डन कहते हैं वहां पहुंचे। आजाद के एक क्रांतिकारी साथी वहां पर उनका इंतजार कर रहे थे, तभी चंद मिनटों में अंग्रेज पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया और गोलियों की बौछार शुरु हो गई। उन्होंने अपनी माउजर से मोर्चा सम्हाला लेकिन खुद शहीद हो गए।

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जिंदा या मुर्दा का इनाम किसी और को मिला
चंद्रशेखर आजाद की मौत से जुड़ी फाइल आज भी लखनऊ के सीआईडी ऑफिस गोखले मार्ग पर रखी है। हांलाकि इस फाइल को जलाने का आदेश नेहरु मंत्रीमंडल ने भेजा था लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत इसे जलवाने की जगह गोपनीय कर दिए और दिल्ली सरकार को जबाव भेज दिए कि जलवा दिया। उस फाइल में इलाहाबाद के तत्कालीन पुलिस सुपररिटेंडेंट नॉट वावर के बयान दर्ज हैं।
परिवार में कोई नहीं बचा
अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद उनके परिवार में कोई नहीं बचा। बताया जाता है कि उनकी शहादत के बाद यहां तक की देश को आजादी मिलने के वर्षों बाद तक उनकी अत्यंत बुजुर्ग माताजी झांसी के पास जंगल से लकड़ी बीन का बेचती थी जिससे उनका गुजारा चलता था। यहां तक की आजाद की माता जी की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार भी स्थानीय लोगों ने आपस में चंदा जुटाकर किया। आजाद के जन्म स्थान को लेकर इतिहास के जानकार उपेंद्र गुप्त बताते हैं कि पहले उनके जन्म स्थान को लेकर माना जाता था कि वह मध्य प्रदेश के थे लेकिन नए शोध के मुताबिक वह यूपी के ही उन्नाव जिले के निवासी थे। उनका परिवार उन्नाव से झांसी पलायन कर गया था
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हनुमान जी के भक्त थे आजाद
इलाहाबाद में कटरा के जिस मकान में वह रहा करते थे उस कमरे का किराया महीने का महज डेढ़ रुपया हुआ करता था। मकान मालकिन 1994 में 96 वर्ष की हो चुकी थी। वह बताती थी कि इसी कमरे में आजाद रहा करते थे और आंगन में अपनी साइकिल खड़ी करते थे। उनका व्यवहार सबसे अत्यंत मधुर था, नियमित कसरत करना और पूजा पाठ किया करते थे। मकान मालकिन अत्यंत बुजुर्ग माताजी याद करके बताती है कि चंद्रशेखर आजाद लेटे हनुमान जी का दर्शन करने जरूर जाते थे। वह हनुमान भक्त थे। अल्फ्रेड पार्क में जब उनकी शहादत हो गई और इलाहाबाद शहर सहित देशभर में हलचल हुई तब जाकर पता चला कि इस कमरे में रहने वाले कोई और नहीं बल्कि देश के महान सपूत चंद्रशेखर आजाद थे। आजाद की स्मृतियों को सहेजने के लिए आजाद हिंद फाऊंडेशन चलाने वाले राजू मिश्र बताते हुए कि जिस जामुन के पेड़ के नीचे अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की शहादत हुई थी उस स्थान की मिट्टी को लोग अपने माथे पर लगाने लगे थे। उस जामुन के पेड़ के नीचे महिलाएं पूजा पाठ धूप अगरबत्ती करने लगी थी। जो अंग्रेजों को नागवार गुजरा और उन्होंने वह पेड़ भी कटवा दिया। बाद में जब देश को आजादी मिली तो उस स्थान पर एक दूसरा जामुन का पेड़ लगाया गया। हालांकि अब वह जामुन का पेड़ भी नहीं है और उस स्थान पर चंद्रशेखर आजाद की भव्य प्रतिमा की स्थापना की गई है।
संग्रहालय में रखी है पिस्तौल
आजाद की शहादत स्थल पर ही संग्रहालय का निर्माण किया गया है। चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल यहां पर रखी गई है। यहां के निदेशक राजेश पुरोहित बताते हैं कि आजाद की पिस्तौल देखने आने वालों की बड़ी तादात है। उनकी पिस्तौल को देखकर लोग भावुक हो जाते हैं। संग्रहालय में ही वह तश्वीर भी लगाई गई है जो आजाद की शहादत के बाद अंग्रेज पुलिस अधिकारियों ने ली थी। उनकी शहादत के बाद उस जामुन के पेड़ को अंग्रेजों ने कटवा दिया था, हांलाकि आजादी के बाद दूसरा जामुन का पेड़ उसी स्थान पर लगाया गया। वहां पर आजाद की एक छोटी सी प्रतिमा की भी स्थापना की गई। बाद में स्वयंसेवी संस्थाओं ने आपस में चंदा लगाकर उस स्थान पर चंद्रशेखर आजाद की बड़ी मूर्ति की स्थापना की है। जहां आज भी लोग श्रद्धासुमन अर्पित करने जाते हैं। वर्तमान में इतना ही है।

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