संगम के पास बनी झोपड़ी में जब सूखी हुई ढेर सी रोटी, बाटी व टोकरी में भरे हुए बासी चावल का भंडार देख कर सभी के कदम रुक जा रहे थे। पहले तो लगा कि यह परिवार अपने खाने के लिए ही सारी चीजे जुटा रहा होगा। लेकिन परिवार के सदस्य से बातचीत के बाद सारी कहानी खुल गयी। पत्रिका से बातचीत में बांदा के बगदा ने बताया कि वह कुंभ मेले के दौरान अपने १२ लोगों के परिवार के साथ कुंभ मेले में आये हैं और यहां पर मेले के दौरान साफ-सफाई करते हैं। इसी दौरान हम लोगों को फेंकी हुई रोटी, बाटी व चावल मिल जाता है जिसे जमा कर लेते हैं। यह सारी चीजे सूख गयी है और लोग इन्हें फेंक देते हैं लेकिन हम इसका स्टॉक जमा कर रहे हैं ताकि जानवरों को कुछ माह का भोजन उपलब्ध कराया जा सके।
परिवार का दावा नहीं होती रोटी खराब, आराम से खा लेते हैं जानवर
बगदा ने बताया कि अन्न तो अन्न होता है यदि हम इन्हें नहीं जुटाते हैं तो लोग फेंक देते हैं। अन्न बर्बाद हो जाता है जबकि अन्न का एक-एक दाना बेहद कीमती होती है। रोटी, चावल व बाटी सूख जाती है लेकिन खराब नहीं होती है। इसे जानवर आराम से खा लेते हैं। बगदा ने कहा कि साहब इस अन्न को बर्बाद करने की जगह किसी पेट का भर जाये तो क्या खराबी है।
कई कुंतल अन्न को बर्बाद होने से बचा रहा यह परिवार
बांदा का यह परिवार कई कुंतल अन्न को बर्बाद होने से बचा रहा है। पशुओं के चारे के रुप में इस अन्न का उपयोग किया जायेगा। सडऩे व बर्बाद होने की जगह यह अन्न किसी का पेट भरने के काम आयेगा। बगदा का परिवार इतना गरीब है कि वह अच्छे चारे तक की व्यवस्था नहीं कर सकता है लेकिन कुंभ में फेंकी मिली रोटी, चावल व बाटी का उपयोग करके वह पशुओं का पेट भरेगा।