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पूरे जुलूस के दौरान या हुसैन, या अली के नारे गूंजते रहे। जुलूस में शामिल कर्बला के शहीदों की याद में शक्ति प्रदर्शन भी किया गया। इस दौरान मोहर्रम जुलूस में अकिकतमंद तिरंगे को लेकर निकले कर्बला की जंग के प्रतीक के रुप में अकीदतमंदों ने अस्त्र और शस्त्र का भी प्रदर्शन किया। जुलूस में शामिल अकीदतमंदों का कहना है कि जुल्मए बेइंसाफी और दहशतगर्दी के खिलाफ इमाम हुसैन पूरे इतिहास में सबसे बड़े प्रतीक के रुप में मौजूद हैं। कर्बला की जंग आतंकवाद के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई है।
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बता दें कि मोहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना है और इससे इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है। लेकिन दस मोहर्रम को कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन को शहीद कर दिया गया था। इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुस्लिम समुदाय आज के दिन शोक मनाते हैं। मोहर्रम का यह सबसे अहम दिन माना गया है। इस दिन जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद किया जाता है। 10वें मुहर्रम पर रोज़ा रखने की भी परंपरा है। इस बार मोहर्रम का महीना 01 सितंबर से 28 सितंबर तक है। लेकिन 10वां मोहर्रम सबसे खास है। ऐसी मान्यता है कि 10वें मोहर्रम के दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने प्राण त्याग दिए थे।
वैसे तो मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का महीना हैए लेकिन आमतौर पर लोग 10वें मोहर्रम को सबसे ज्यादा तरजीह देते हैं। मोहर्रम के इस जुलूस में सभी धर्मों के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और जगह.जगह लंगर और छबीलें भी लगायी गई थी। मोहर्रम के जुलूस को लेकर पुलिस और प्रशासन की ओर से भी सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।