17 शृंगार करते हैं नागा साधु
महिलाएं जहां सोलह शृंगार करती हैं, वहीं नागा संन्यासियों का शृंगार सत्रह प्रकार का होता है, जो और भी कठिन व विशिष्ट होता है। मंगलवार को ये नागा संन्यासी अपने पूरे सत्रह शृंगार के साथ पवित्र गंगा स्नान के लिए निकले, और उनके इस विशेष अंदाज ने महाकुंभ के इस पवित्र आयोजन को और भी भव्य बना दिया।शरीर पर भभूत मलते हैं साधु
नागा संन्यासियों के शृंगार का सबसे विशिष्ट हिस्सा उनका सत्रहवां भस्मी शृंगार है, जो उन्हें महिलाओं के सोलह शृंगार से अलग और खास बनाता है। वे स्नान के लिए निकलने से पहले अपने पूरे शरीर पर भभूत (राख) मलते हैं, जो उनके आध्यात्मिक स्वरूप और साधना का प्रतीक है। भस्मी शृंगार के बाद पंचकेश की प्रक्रिया होती है। अगर संन्यासी बाल रखते हैं, तो वे उन्हें संवारते हैं, और अगर नहीं रखते, तो उन्हें साफ करते हैं। बालों के शृंगार के बाद, वे रोरी, तिलक और चंदन का इस्तेमाल कर अपना सज्जा करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे महिलाएं बिंदी, सिंदूर और काजल का उपयोग करती हैं।
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गहनों की जगह रुद्राक्ष पहनते हैं साधा
महिलाओं की तरह गहनों की जगह नागा संन्यासी रुद्राक्ष की माला पहनते हैं। वे हार की जगह माला, चूड़ियों की जगह कड़ा, और अपने साथ चिमटा, डमरू और कमंडल जैसे साधना के प्रतीक उपकरण धारण करते हैं। हालांकि दिगंबर नागा वस्त्र नहीं पहनते, लेकिन लोकलाज को ध्यान में रखते हुए वे लंगोट या कोपिन पहनते हैं। अमृत स्नान के लिए गंगा तट पर पहुंचने के बाद इनका उत्साह दोगुना हो जाता है और नागा उन्मुक्त भाव से उसी तरह उछलते हैं, जैसे कोई बच्चा अपनी मां को देखकर उछलता है। उनका यह उत्साह महाकुंभ के पवित्र वातावरण को और भी दिव्य बना देता है। यह भी पढ़ें
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ईष्टदेव महादेव से जुड़ा है श्रृंगार
• भभूत- क्षणभंगुर जीवन की सत्यता का आभास कराती है भभूत। नागा साधु भभूत को सबसे पहले अपने शरीर पर मलते हैं। • चंदन- हलाहल का पान करने वाले भगवान शिव को चंदन अर्पित किया जाता है। नागा साधु भी हाथ, माथे और गले में चंदन का लेप लगाते हैं। • रुद्राक्ष- रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। नागा साधु सिर, गले और बाजुओं में रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं। • तिलक- माथे पर लंबा तिलक भक्ति का प्रतीक होता है।
• सूरमा- नागा साधु आंखों का शृंगार सूरमा से करते हैं। • कड़ा– नागा साधु हाथों व पैरों में कड़ा पीतल, तांबे, सोने या चांदी के अलावा लोहे का कड़ा पहनते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव भी पैरों में कड़ा धारण करते थे।
• चिमटा– चिमटा एक तरह से नागा साधुओं का अस्त्र भी माना जाता है। नागा साधु हमेशा हाथ में चिमटा रखते हैं। • डमरू- भगवान शिव का सबसे प्रिय वाद्य डमरू भी नागा साधुओं श्रृंगार का हिस्सा है।
• कमंडल- जल लेकर चलने के लिए नागा साधु अपने साथ कमंडल भी धारण करते हैं। • जटा- नागा साधुओं की जटाएं भी एकदम अनोखी होती हैं। प्राकृतिक तरीके से गुथी हुई जटाओं को पांच बार लपेटकर पंचकेश शृंगार किया जाता है।
• लंगोट- भगवा रंग की लंगोट को नागा साधु धारण करते हैं। • अंगूठी- नागा साधु हाथों में कई प्रकार की अंगूठियां पहनते हैं। हर एक अंगूठी किसी न किसी बात का प्रतीक होती है।
• रोली- नागा साधु अपने माथे पर भभूत के अलावा रोली का लेप भी लगाते हैं। • कुंडल- नागा साधु कानों में चांदी या सोने के बड़े-बड़े कुंडल सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक माने जाते हैं।
• माला– नागा साधुओं की कमर में माला भी उनके श्रृंगार का हिस्सा होती है।• मधुर वाणी- मधुर वाणी भी नागा साधुओं के श्रृंगार का हिस्सा है। • साधना- सर्वमंगल की कामना से नागा साधु जो साधना करते हैं, वह महत्वपूर्ण श्रृंगार है।