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प्रयागराज

यूपी सरकार जिस प्रयागराज के नाम पर कर रही अपनी ब्रांडिंग, उस जिले में स्वास्थ्य का यह हैं हाल

लाखों की डायलसिस मशीन खा रही जंग, जिम्मेदार बेपरवाह

प्रयागराजSep 07, 2019 / 01:34 pm

प्रसून पांडे

health services critical position,dialysis machine kept as showpiece

यूपी सरकार जिस प्रयागराज के नाम पर कर रही अपनी ब्रांडिंग, उस जिले में स्वास्थ्य का यह हैं हाल

प्रयागराज। राज्य सरकार और केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं के तहत स्वास्थ्य विभाग को मजबूत करने की कवायद के दावे हर दिन किए जाते है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है। प्रयागराज के तेज प्रताप सप्रू (बेली) जिला अस्पताल में डायलिसिस मशीन बन्द पड़ी है। जबकि अभी तक सूबे के स्वास्थ मंत्री इसी जिले से आते थे।अस्पताल प्रशासन की माने तो कुंभ से पहले तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने इसे सही कराने गुहार लगाई गई थी।लेकिन आश्वसन के बाद भी कुछ नहीं हुआ। राज्य सरकार जिस प्रयागराज के नाम पर देश भर में अपनी ब्रांडिंग करने में जुटी है उस जिले में स्वास्थ्य का यह हाल यह की सालों से बंद पड़ी मशीन को दोबारा से शुरू नही कराया जा सका है।

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लाखों की कीमत ,अब लग रहा जंग
बेली अस्पताल के डायलिसिस विभाग में लाखों की कीमत की डायलिसिस की मशीन में जंग लग रहा है। जिसकी वजह से डायलिसिस के मरीजों को शहर के बाहर या प्राइवेट अस्पतालों में मोटी रकम देकर डायलिसिस कराने के लिए जाना पड़ रहा है। जहां उन्हें मोटी रकम चुकानी पड़ती है। बिलियस पताल में डायलिसिस मशीन लगने से किडनी और गुर्दे के मरीजों को बड़ी राहत थी और देर से ही लेकिन उन्हें नंबर अपनी डायलिसिस का कम पैसे में कराने का मिल जाता था डॉक्टरों की मानें तो दो हजार चार या पांच में डायलिसिस मशीन लगाई गई थी दो.तीन साल तक यह सही चली जिसके बाद थोड़ी बहुत खराबी आने पर स्थानी तकनीक जनों से इसे बनवाया गया लेकिन कुछ दिनों बाद यह पूरी तरह से बंद हो गई लगभग पांच सालों से अब बंद पड़ी है।

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तीन सौ में होती थी डायलिसिस
अस्पताल प्रशासन की मानें तो कई बार तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री और शासन को पत्र लिखकर नई मशीन की मांग की गई लेकिन अब तक शासन द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया। हालांकि जब मशीन चलती थी तो हर दिन में पांच से 6 मरीजों का डायलिसिस होता था। हर मरीज को डायलिसिस का 300 देना होता था। डायलिसिस विभाग में तैनात एक वार्ड बॉय पर एक टेक्नीशियन ने कहा कि डायलिसिस मशीन लगने के बाद उन्हें कुछ दिन ट्रेनिंग दी गई थी उसके बाद से उनकी नियुक्ति यही थी लेकिन जब से मशीन बंद है वह अस्पताल के अन्य कामों में लगाए गए टेक्नीशियन ने कहा कि हमारी मजबूरी है कि मरीजों को हम वापस कर देते हैं और उन्हें मोटी रकम में प्राइवेट अस्पतालों में जाना होता है।

कुछ दिनों तक खुद से बनाई गई मशीन
जिला चिकित्सालय के डॉक्टरों का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्री से कई बार शिकायत करने के बाद ना तो डायलिसिस मशीन बनवाई गई और ना ही नई मशीन का प्रबंध किया गया। पिछले कई सालों से मशीन खराब है। डायलिसिस के मरीजों की बड़ी संख्या हर दिन यहां पहुंचती है। लेकिन डायलिसिस ना होने के चलते उन्हें वापस जाना होता है।

कई बार शासन को लिखी गई चिठ्ठी
बेली अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक सुषमा श्रीवास्तव ने कहा कि कई वर्षों से मशीन बंद है।एक दो बार मशीन के खराब होने पर स्थानीय स्तर पर इसे बनवाया गया। मरीजों का डायलिसिस किया जा रहा था लेकिन पिछले कुछ सालों से या पूरी तरह से बंद हो गई है। मशीन के कई पार्ट पूरी तरह से खराब हो चुके हैं। सरकार से नई मशीन की मांग की गई है। लेकिन अभी तक न ही मशीन भेजी गई और ना ही को बनवाने की व्यवस्था की गई।

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