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उनका कहना है कि अपनी नृशंसता के बावजूद नगा समुदाय में यह संगठन उनकी आकांक्षाओं की आवाजा के रूप में नहीं उभर पाया है। यही वजह है कि केवल उसके साथ शांति वार्ता के माध्यम से नगा समस्या का स्थाई समाधान नहीं हो सकता है। इसके साथ के उनकी ओर से नगाओं के दूसरे संगठनों और समूहों के साथ भी शांति वार्ता का आगाज करने से यह ग्रुप भड़क उठा है। नतीजतन उसने फिर से जंगलों में लौटकर सशस्त्र संघर्ष करने की धमकी देना आरंभ कर दया है।
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आपको बता दें कि साल 1975 के शिलांग समझौते की देन इस हिंसावादी संगठन की उत्तपत्ति में एसएस खापलांग, आइजैक चिशी स्वू और थुंगालेंग मुइबा जैसे चरमपंथियों की प्रमुख भूमिका था। जिन्होंने आगे चलकर साल 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन) का निर्माण किया। इस संगठन ने शिलांग समझौते को नगा आंदोलन के साथ थोखा बताया। एनएससीएन ने नगा समुदाय से एकजुट होने का आहृवाण किया। यह संगठन ने माओ की कार्यशैली से प्रेरित था। यही वजह है कि ये हिंसा में यकीन करते हैं।