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दरअसल शुक्रवार देर शाम तक मुल्लांपुर के गुरशरण कला भवन में 32 किसान जत्थेबंदियों की बैठक हुई थी। बैठक के बाद पांच किसानों के प्रतिनिधि मंडल ने साफ कर दिया कि 22 किसान यूनियन किसान संघर्ष के लिए एकजुट हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति करना और चुनाव लड़ना प्रत्येक यूनियन का अधिकार है। हालांकि इसको लेकर सबके अपने-अपने विचार भी हो सकते हैं।
चुनाव लड़ने को लेकर सात संगठन ऐसे भी हैं, जिन्होंने दूरी बनाने का फैसला किया है। इनमें से एक जय किसान आंदोलन (Jai Kisan Andolan) भी है। इस संगठन ने कहा है कि वह किसान संगठनों की ओर से SKM के नाम से चुनावी मोर्चा गठन के विचार का समर्थक नहीं है और न ही किसी ऐसे प्रयोग का हिस्सा बनेगा।
गुरनाम चढ़ूनी भी बना चुके पार्टी
किसान संगठनों का पहला मामला नहीं इससे पहले पंजाब चुनाव को लेकर भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने भी पार्टी बनाई है। पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने संयुक्त संघर्ष पार्टी बनाई थी।
खास बात यह है कि चढ़ूनी गुट भी सभी 117 सीटों पर ताल ठोकने को तैयार है। उन्होंने पंजाब इकाई का अध्यक्ष अरशपाल सिंह को नियुक्त किया था।
अफीम खेती को वैध करने की पैरवी
दरअसल चढ़ूनी पंजाब में अफीम की खेती को वैध करने की भी पैरवी कर चुके हैं। ऐसे में चुनाव के दौरान ऐसे किसान संगठनों पर खास नजर रहेगी। इनके प्रदर्शन पर बहुत कुछ आगे की राजनीति पर निर्भर करेगा।
चढ़ूनी ने कहा था कि वे नशाखोरी के खात्मे के लिए पंजाब में काम करेंगे। गरीब का उत्थान मुख्य प्राथमिकता रहेगा। देश में पार्टियों की कमी नहीं है। नेताओं ने राजनीति को कारोबार बना लिया है। गरीब ज्यादा गरीब हो रहे हैं और अमीर ज्यादा अमीर।