क्या NDA से अलग होने के लिए तैयार है नीतीश का कुनबा ?
नई दिल्ली। मोदी सरकार पार्ट टू का देश में आगाज हो चुका है। प्रचंड बहुमत के साथ दूसरी बार NDA दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो चुकी है। लेकिन, इस बड़ी जीत के साथ ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ( NDA ) के अंदर एक ‘बवंडर’ शुरू हो गया है। इस ‘बवंडर’ ने BJP और JDU को एक बार फिर आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया है। दोनों के बीच ‘कुर्सी’ को लेकर ऐसा हंगामा बरपा की JDU दिल्ली की सत्ता दूर हो गई और अब एक बार यह चर्चा है कि क्या नीतीश का कुनाब NDA से अलग होने की तैयारी में है?
दिल्ली से दूर हुई JDU 30 मई को नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्रियों के शपथ ग्रहण की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी। दोपहर तक सब कुछ ठीक था। लेकिन, शपथ ग्रहण से कुछ देर पहले अचानक यह खबर आई कि जेडीयू मोदी सरकार से बाहर रहेगी। इस खबर ने अचानक सनसनी मचा दी। पहले तो लोगों को समझ में नहीं आया कि ऐसा क्या हुआ कि शपथ ग्रहण से ठीक पहले जेडीयू ने इतना बड़ा फैसला लिया। लेकिन, कुछ ही देर बाद राष्ट्रपति भवन से ही जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सारी चीजें साफ कर दी। नीतीश ने कहा कि मोदी मंत्रिमंडल में हमें जितनी सीटें चाहिए थी, उतनी नहीं दी गई। कहा यह जा रहा था कि कि इतने बड़े सहयोगी दल और जीत में जेडीयू की भागीदारी जितनी है उसके मुताबिक जदयू के तीन सदस्यों को मंत्री पद मिलना चाहिए। लेकिन, बीजेपी केवल एक पद देने के लिए तैयार थी। नीतीश कुमार के इस बयान से ही साफ हो गया कि बीजेपी और जेडीयू के बीच अब मामला ठीक नहीं रहा। हालांकि, बीजेपी ने जेडीयू को ना तो शांत कराने की कोशिश की और न ही समझाने की। शपथ ग्रहण हो गया और विभाग भी बंट गया। लेकिन, JDU ने बीजेपी के खिलाफ जुबानी जंग छेड़ दी।
पढ़ें- दिल्ली की सत्ता से दूर रहेगी JDU, 1 मंत्री बनाए जाने से हूं नाराज- नीतीशJDU नेता के बयानों के क्या हैं मायने?नीतीश के बयान शपथ ग्रहण के अगले दिन पटना लौटते ही नीतीश कुमार ने बीजेपी के खिलाफ जुबानी हमला तेज कर दिया। नीतीश ने कहा कि अमित शाह के बुलाने पर मैं उनसे मिलने दिल्ली गया था। उन्होंने कहा कि हम एनडीए के घटक दलों को एक-एक मंत्री पद दे रहे हैं। इस पर मैंने कहा कि मंत्रिमंडल में सांकेतिक प्रतिनिधित्व की जरूरत नहीं है। जदयू के सभी सांसदों ने इस पर सहमति जताई। जदयू के लोकसभा में 16 सांसद और राज्यसभा में 6 सांसद हैं। गठबंधन में होने के नाते जदयू, भाजपा के साथ खड़ी है। इसलिए, पार्टियों को अनुपात के हिसाब से मंत्रिमंडल में भागीदारी मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में जदयू का केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने का अब सवाल ही नहीं है। नीतीश ने अपने बयानों से बीजेपी को यह भी अहसास कराया कि भाजपा की हारी हुई 8 सीटों पर जदयू ने जीत दर्ज की है।
केसी त्यागी और अशोक चौधरी के बयान नीतीश के बयान के बाद पार्टी के कुछ और नेताओं ने भी बीजेपी पर हमला बोला। जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने दावा किया कि पूरे चुनाव में आरजेडी केंद्र सरकार के खिलाफ कम थी, बल्कि राज्य सरकार के खिलाफ ज्यादा लड़ाई लड़ रही थी। माना जा रहा है केसी त्यागी अपने इस बयान से बिहार में जेडीयू को बीजेपी से बड़ा साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। जेडीयू के एक और नेता और सीएम नीतीश के बेहद करीबी माने जाने वाले अशोक चौधरी ने कहा कि बीजेपी की पॉलिसी के साथ जेडीयू एडजस्ट नहीं करती है। उन्होंने कहा कि लोग कुछ देने के बाद साथ होते हैं, हम बिना कुछ लिए साथ हैं। सिर्फ मंत्री बनना ही जेडीयू का उद्देश्य नहीं है बल्कि बिहार का विकास करना हमारी प्राथमिकता है। इन बयानों से साफ स्पष्ट है कि अब दोनों पार्टियों के बीच मतभेद शुरू हो चुका है। लेकिन, सवाल यह कि क्या नीतीश कुमार का कुनबा NDA से अलग होने की तैयारी में है? नेताओं के बयानों से संकेत तो ऐसे ही मिल रहे हैं। लेकिन, राजनीति में कब, कहां, क्या और कैसे हो जाए यह कोई नहीं जानता?
पढ़ें- आपराधिक मामलों से घिरे हैं PM मोदी के 7 कैबिनेट मंत्री, गृह मंत्री अमित शाह भी शामिलPM मोदी के कारण ही NDA से अलग हुए थे नीतीश कुमार नीतीश कुमार अक्सर यह बयान देते हैं कि जेडीयू एनडीए का सबसे पुराना सहोयगी दल है। अटल सरकार में JDU की भागीदारी बहुत ज्यादा थी। तभी तो बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने JDU को रक्षा और रेल मंत्रालय दे दिया था। लेकिन, 2004 के लोकसभा चुनाव में NDA पिट गई और केन्द्र में यूपीए की सरकार आ गई। 2014 तक एनडीए की राजनीति काफी शांत रही और एक अलग विचारधार पर चल रही थी। लेकिन, जैसे ही यह घोषणा हुई की 2014 का लोकसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में लड़ी जाएगी। NDA के कुछ सहयोगी दलों में खलबली मच गई, खासकर JDU में। इस ऐलान के साथ ही JDU एनडीए से अलग हो गई। क्योंकि, उस वक्त नीतीश कुमार की लोकप्रियता भी चरम पर थी और कहा जाता है कि वह बिहार से निकलकर दिल्ली की गद्दी पर बैठने की तैयारी कर रहे हैं। परिणाम यह हुआ कि JDU यूपीए के साथ चली गई। लेकिन, जब चुनाव परिणाम आया तो बिहार में JDU चारो खाने चित हो गई और NDA में शामिल रालोसपा और एलजेपी ने बड़ी जीत हासिल की।
पढ़ें- कांग्रेस संसदीय दल की नेता चुनी गईं सोनिया गांधी, 12 करोड़ वोटर्स को बोला शुक्रियाबिहार विधानसभा चुनाव के बाद BJP ने चली थी बड़ी चाल? 2014 लोकसभा चुनाव के ठीक एक साल बाद बिहार में विधानसभा चुनाव हुआ। समीकरण लोकसभा चुनाव वाला ही था। विधानसभा चुनाव में बीजेपी नीत एनडीए को शिकस्त मिली और JDU-RJD ने सत्ता में वापसी की। करीब दो सालों तक नीतीश कुमार ने RJD के साथ सरकार चलाई। लेकिन, एक पुरानी कहावत है कि राजनीति का एक ही सच है कि उसका कोई सच नहीं। JDU-RJD का गठबंधन टूट गया और सरकार गिर गई। मौके का फायदा उठाते हुए BJP ने JDU का समर्थन कर दिया। बिहार में NDA की सरकार बन गई।
पढ़ें- गृह मंत्री अमित शाह ने कार्यभार संभालाः अधिकारियों की लेंगे बैठक, राजनाथ सिंह के हाथ देश की रक्षाबीजेपी को जीत का श्रेय! करीब 15 साल बाद JDU और बीजेपी ने एक साथ लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाई। सीट बंटवारे में बीजेपी को जेडीयू से समझौता करना पड़ा और दोनों दलों ने 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ी। जेडीयू के कारण बीजेपी ने RLSP को कुर्बान कर दिया और उपेन्द्र कुशवाहा NDA से बाहर हो गए। पूरे चुनाव में मोदी लहर दिखी। जेडीयू ने अपना घोषणापत्र तक जारी नहीं किया। लेकिन, चुनाव परिणाम बेहद चौंकाने वाला था। NDA ने 39 सीटों पर जीत हासिल की। इनमें बीजेपी-17, जेडीयू-16, लोजपा-06 शामिल हैं। इस जीता का सारा श्रेय पीएम नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को चला गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह BJP की है। क्योंकि, पूरे देश मेॆं बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला और अकेले पार्टी ने 303 सीटों पर जीत दर्ज की है।
क्या यह 2020 की है तैयारी? जेडीयू ने यह तो कह दिया है कि हम सरकार में नहीं रहेंगे, लेकिन NDA का हिस्सा जरूर रहेंगे? लेकिन, क्या अब बीजेपी जेडीयू से अलग होना चाहती है? दरअसल, 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी इस लोकसभा चुनाव परिणाम से बेहद गदगद है। पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि बिहार में NDA को जो जीत मिली है वह बीजेपी के नाम पर मिली है। पार्टी के कुछ नेता JDU और LJP की जीत को नजरअंदाज करने में लगे हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी अब बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ने की सोच रही है। लिहाजा, इसकी शुरुआत हो चुकी है। प्रदेश में जेडीयू का जनाधार भी कम हो रहा है। RJD अब JDU को साथ नहीं लेना चाहती। हालांकि, कांग्रेस जरूर जेडीयू पर डोरे डाल रही है। लेकिन, जिस तरह के परिणाम सामने आए हैं उससे साफ स्पष्ट है कि बिहार में महागठबंधन को लोगों ने ठुकरा दिया है। इतना ही खुद महागठबंधन के अंदर घमासान मचा हुआ है। ऐसे में जेडीयू के पास NDA को छोड़ने का कोई विकल्प नहीं दिख रहा है। वहीं, बीजेपी इस जनाधार से विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत के बारे में सोच रही है। लिहाजा, पार्टी को जेडीयू को नजरअंदाज में करने में देर नहीं लगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या नीतीश कुमार अपनी राजनीति बचाने के लिए बीजेपी के सामने बेबस हैं। या फिर बीजेपी ही अब जेडीयू को बाहर का रास्ता दिखाना चाहता है?