बीजेपी के कई विधायकों की नाराजगी की वजह से सीएम रावत की कुर्सी पर संकट मंडराता नजर आ रहा है। दरअसल प्रदेश में अब तक बीजेपी का कोई भी नेता अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। सिवाय नारायण दत्त तिवारी के। ऐसे में अब हर किसी की नजर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत पर है, कि वे विधायकों की नाराजगी को दूर कर इस तिलिस्म को तोड़ पाएंगे।
बंगाल में सियासी कड़वाहट के बीच मिठास घोल रही दीदी-मोदी मिठाइयां, जानिए क्या है इनमें खास उत्तराखंड की सत्ता में बीजेपी तीसरी बार काबिज है, लेकिन पार्टी का एक भी सीएम पांच साल तक कुर्सी पर नहीं रह सका है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी की सरकार के कार्यकाल में 2000 में उत्तराखंड राज्य का सपना साकार हुआ था। यूपी से अलग होकर बने उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार बनी और दो साल में दो मुख्यमंत्री बन गए।
उत्तरखंड के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर बीजेपी के नेता नित्यानंद स्वामी ने 9 नवम्बर 2000 को शपथ ली, लेकिन एक साल भी वो कुर्सी पर नहीं रह सके। नित्यानंद के खिलाफ बीजेपी नेताओं ने मोर्चा खोल दिया, और उन्हें 29 अक्टूबर 2001 को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा।
इसके बाद बीजेपी ने अपने दिग्गज नेता भगत सिंह कोश्यारी को विधायक दल का नेता चुना।
कोश्यारी ने 30 अक्टूबर 2001 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ भी ली, लेकिन सत्ता उन्हें ज्यादा दिन रास नहीं आई और 1 मार्च 2002 तक ही सीएम रह सके।
साल 2002 में प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी ने कोश्यारी के अगुवाई में चुनाव लड़ा और हार का मुंह देखा। सिर्फ एनडी तिवारी ने पूरे किए पांच साल
कांग्रेस ने सत्ता हासिल की और नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया। सिर्फ उन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। 2007 तक मुख्यमंत्री रहे।
ममता को समर्थन दो बदले में 50 लाख रुपए लो, बंगाल चुनाव से पहले फारूक अब्दुल्ला का चौंकाने वाला खुलासा 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भी करारी शिकस्त मिली। बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई।
लेकिन 2007 से 2012 के बीच यानी पांच साल में बीजेपी ने तीन बार सीएम बदले।
8 मार्च 2007 को भुवन चन्द्र खंडूरी को सीएम बनाया, लेकिन वह 23 जून 2009 तक ही इस पद रह सके। इसके बाद बीजेपी ने खंडूरी की जगह रमेश पोखरियाल निशंक को सत्ता की कमान सौंपी।
निशंक ने 24 जून 2009 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली, लेकिन चुनाव से ठीक चार महीने पहले उनकी कुर्सी चली गई। 10 सितम्बर 2011 को बीजेपी ने खंडूरी को दोबारा सीएम बनाया। लेकिन साल 2012 फिर कांग्रेस ने वापसी की। कांग्रेस को भी पांच साल में दो सीएम बदलना पड़े। पहले विजय बहुगुणा सीएम बने। दो साल बाद हरीश रावत को कमान सौंपी गई।
2017 के चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी के हाथों करारी हार मिली। बीजेपी ने सत्ता की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी। 18 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली, जिसके बाद से वह अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं।
हालांकि अब उनकी सत्ता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ये बादल छंट जाएंगे या फिर रावत भी पांच साल का तिलिस्म नहीं तोड़ पाएंगे आने वाले दिनों में ये साफ हो जाएगा।