क्या पीएम मोदी पश्चिम बंगाल से लड़ेंगे चुनाव, पत्रकारों के इस सवाल का अमित शाह ने दिया ये जवाब सत्ता में रहने पर कब-कब गिरे भाजपा के वोट प्रतिशत बता दें कि 1980 में भाजपा का गठन हुआ और पहली बार 1984 में पार्टी चुनाव लड़ी। 1984 से 1998 के चुनाव तक हर बार भाजपा के वोटों में पिछले चुनाव की तुलना में इजाफा हुआ। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की पहली सरकार बनने के बाद यह स्थिति उलट गई। इसके बाद के 1999, 2004 और 2009 में भाजपा के मत प्रतिशत में लगातार गिरावट देखी गई। यहां तक कि 1999 में सत्ता में आने के बाद भी उसके वोट कम हुए थे।
कांग्रेस के खाते में दर्ज है यह रिकॉर्ड 1952 से अभी तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में सिर्फ चार बार ही सतारूढ़ पार्टी के मत प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है। चारों बार कांग्रेस के खाते में यह रिकॉर्ड दर्ज है। भाजपा सत्ता में रहते हुए कभी भी पिछली बार की तुलना में अपने मतों में इजाफा करने में सफल नहीं रही है। एक तथ्य ये भी है कि जब 2004 में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा तो उसके पास 28 फीसदी वोट थे और अब कांग्रेस का वोट प्रतिशत 19.6 फीसदी रह गया है। एक अनुमान के मुताबिक अगर कांग्रेस 6 से 7 फीसदी की बढ़ोतरी कर भी लेती है तब भी पार्टी को 100 सीटों से ज्यादा नहीं मिल पाएंगी।
9 करोड से ज्यादा मतदाताओं ने भाजपा को किया था वोट 2014 के चुनाव में 2009 की तुलना में करीब 12 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने भाजपा को वोट किया था। विगत चुनाव में पहले के मुकाबले करीब 14 करोड़ अधिक लोगों ने मतदान किया था। 2009 के मुकाबले 2014 में भाजपा को लगभग नौ करोड़ से ज्यादा मतदाताओं ने वोट किया था। भाजपा को 2009 की तुलना में 2014 में 12 फीसदी मत ज्यादा मिले थे। लोकसभा चुनाव के इतिहास में यह इजाफा किसी एक पार्टी के वोट बैंक में सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। 2014 से पहले के किसी भी चुनाव में न तो कभी इतने ज्यादा मतदाता जुड़े, न ही इतनी संख्या में मतदाता वोट करने आये और न ही किसी पार्टी को किसी एक चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में इतने अधिक वोट मिले। साफ है कि भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस को इस बार बड़े अंतर से जीत दर्ज करनेे की जरूरत हैैै।
पुलवामा के बाद बदल गए समीकरण पिछले साल कांग्रेस द्वारा तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस जीत की राह पर चल पड़ी है। लेकिन पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद 2019 का समीकरण बदलता नजर आ रहा है। राष्ट्रवाद के घोड़े पर सवार भाजपा ने पुलवामा के बाद चुनावी समीकरण अपने पक्ष में कर लिया है। हिंदी राज्यों में तो उसने अपने नुकसान को काफी कम कर लिया है। कांग्रेस के साथ-साथ दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों को भी अपनी रणनीति पर दोबारा सोचने पर मजबूर किया है। पुलवामा और बालाकोट से पहले सवाल ये था कि क्या भाजपा 2019 में वापसी कर पाएगी? पुलवामा हमले के बाद अब सवाल ये है कि भाजपा 2019 में कितनी सीटें जीत पाएंंगी।
निर्मला सीतारमण ने वायनाड के सुल्तान बाथरी में किया रोड शो, NDA उम्मीदवार वेल्ल… वाजपेयी हार सकते हैं तो मोदी क्यों नहीं? इससे अलग एक राय यह भी है कि अगर अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोकप्रिय नेता को 2004 में कमजोर कांग्रेस और बंटा हुआ विपक्ष हरा सकता है तो क्या नरेंद्र मोदी को 2019 में नहीं हराया जा सकता है?
लेफ्टिनेंट जनरल DS हुड्डा ने कहा- ‘दुख होता है जब शहीद के बारे में ऐसी बातें कही जाती हैं ‘ चुनौती देने की स्थिति में नहीं हैं क्षेत्रीय पार्टियां ये सही है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली में विपक्षी पार्टियों का गठबंधन भाजपा को बैकफुट पर लाने की स्थिति में था। लेकिन इनमें से ओडिशा, प. बंगाल, तमिलनाडु, केरल, बिहार, महाराष्ट्र में भाजपा ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली हैं। 2014 की तुलना में भाजपा इन राज्यों में ज्यादा मजबूत हुई है। जबकि विपक्ष खुद को महागठबंधन के रूप में मजबूती के साथ खड़ा नहीं कर पाया।
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