लोकसभा में नेता विपक्ष, कांग्रेस के कद्दावर नेता और राहुल गांधी के सिपाहसालार मल्लिकार्जुन खडगे चुनाव में हार गए। कर्नाटक की गुलबर्गा सीट से ताल ठोंक रहे खडगे को भाजपा प्रत्याशी उमेश जाधव ने करीब एक लाख वोटों से पछाड़ा है। यानी लोकसभा में राहुल की सेना का सिपाहसालार ही ढेर हो गया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया राहुल गांधी की सेना में अहम कड़ी रहे हैं। लेकिन इस चुनाव में राहुल गांधी की ये कड़ी में कमजोर साबित हुई। मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट से ताल ठोंक रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता भी ज्योतिरादित्य सिंधिया भी हार गए। यहां उनका मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉ. केपी यादव से था। खास बात यह है कि डॉ. केपी यादव कभी सिंधिया के ही करीबी थे।
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार शीला दीक्षित भी इस चुनाव में कुछ खास करिश्मा नहीं छोड़ पाई। राहुल की उम्मीद के मुताबिक शीला का प्रदर्शन पूरी तरह विपरित रहा। शीला को यहां भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी जबरदस्त शिकस्त दी।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी इस लोकसभा चुनाव में अपनी सीट नहीं बचा पाए। सोनीपत से ताल ठोंक रहे हुड्डा को यहां भाजपा के रमेश कौशिक ने हार का स्वाद चखाया। इस हार के साथ ही राहुल गांधी की सेना का एक और मजबूत सिपाही धराशायी हुआ।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस प्रभारी राज बब्बर भी शुरुआती रुझानों से ही पीछे चलते रहे और आखिरकार प्रतिद्वंदी से चुनाव हार गए। फतेहपुर सीकरी से चुनावी मैदान में उतरे यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर पर भी राहुल गांधी ने बड़ा दांव खेला, लेकिन ये पासा भी उलटा पड़ा और उनकी सेना से एक और सिपाही कम हो गया।
लंबे समय से राजनीति से दूर चल रहे मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन में बड़ी भूमिका निभाई थी। यही वजह थी कि इस बार राहुल गांधी को उनसे काफी उम्मीदें थीं। भोपाल सीट से भाजपा प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर को चुनौती देने वाले दिग्गी राजा भी चुनाव नतीजों में हार गए।
महाराष्ट्र की साउथ मुंबई सीट से अपना भाग्य आजमा रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता मिलिंद देवड़ा का जादू भी नहीं चला। कारोबारी मुकेश अंबानी ने देवड़ा के लिए प्रचार किया लेकिन कुछ काम नहीं आया। राहुल की यूथ ब्रिगेड का बड़ा चेहरे माने जाने वाले मिलिंद भी यहां शिवसेना प्रत्याशी अरविंद सावंत से हार गए।
रुझानों में कांग्रेस बमुश्किल 50 के आंकड़े पर पहुंची है। वहीं लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद लेने के लिए 10 फीसदी सीटों की जरूरत पड़ती है। यानी 543 लोकसभा सीटों में से कुल 55 सीटें होना जरूरी है, तभी किसी पार्टी को विपक्षी नेता का पद मिलता है। रुझान नतीजों में तब्दील हुए तो ये बड़ा संकट हो सकता है।