कांग्रेस नेता पंकज शंकर बोले- पुत्र मोह में फंसी हैं सोनिया गांधी, प्रियंका को बनाएं पार्टी का अध्यक्ष अगर सत्ता में भागीदारी को लेकर खींचतान का सिलसिला इसी तरह जारी रहा तो इसका नुकसान केवल भाजपा को न होकर सहयोगी दलों को भी विधानसभा चुनावों के दौरान उठाना पड़ सकता है।
फिलहाल, दोनों राज्यों संपन्न चुनाव परिणामों से साफ है कि बीजेपी ने अनुच्छेद 370, तीन तलाक, कालाधन उन्मूलन और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों को विधानसभा चुनाव में जरूरत से ज्यादा जोर दिया। स्थानीय मुद़दों पर न तो केंद्रीय नेतृत्व ने और न ही राज्य स्तरीय नेताओं ने गौर फरमाया। केंद्रीय नेतृत्व का अति आत्मविश्वास में रहना भी पार्टी के लिए अनुकूल साबित नहीं हुआ। यानि पार्टी के शीर्ष नेताओं को आत्मविश्वा से बचने की जरूरत है।
नया मोड़: मोदी के खिलाफ महाराष्ट्र में बनेगा शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का गठजोड़, शरद आज मिलेंगे सोनिया से मतदाताओं के बीच नैरेटिव्स क्या बन रहा है इसका आकलन बीजेपी और उनके सहयोगी कुशलतापूर्वक नहीं कर सके। यही वो प्वाइंट है जिसे इस बार बीजेपी के चाणक्य भी नहीं पकड़ पाए।
इसलिए एनडीए में शामिल राजनीतिक पार्टियों व उनके नेताओं के लिए बेहतरी इसी में है कि वर्तमान जनादेश से सीख लेते हुए जरूरी कदम उठाएं। ऐसा करना इसलिए दो राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में जरूरी है। पहला, 2014 और 2019 के चुनाव परिणामों से साफ है कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को लेकर मतदाताओं की सोच बदली है।
सत्यपाल मलिक बोले- जमात की विचारधारा वाली है महबूबा मुफ्ती की पार्टी दूसरा महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजों ने बीजेपी सहित एनडीए के सभी सहयोगी दलों के नेतृत्व को नए सिरे से सभी पहलुओं पर विचार करने का संदेश दिया है।