इस मुद्दे पर साहनी ने मीडिया को बताया है कि इस फैसले से सामान्य श्रेणी के योग्य उम्मीदवारों को नुकसान होगा। उन्होंने कहा है कि इस बिल को कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। मैं अभी विचार करूंगी कि क्या मुझे इस बिल के खिलाफ याचिका डालनी चाहिए। इस बिल से आरक्षण की सीमा 60 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी और सामान्य वर्ग के योग्य उम्मीदवार पीछे छूट जाएंगे। 1992 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 26 साल पहले मैंने नरसिम्हा राव के फैसले के खिलाफ दिल्ली के झंडेवाला एक्सटेंशन इलाके में एक प्रदर्शन के बाद फैसले को चुनौती देने का मन बनाया।
आपको बता दें कि आरक्षण से जुड़े फैसलों में एक नया नाम उभरकर सामने आता है। 1992 में नरसिम्हा राव सरकार के अगड़ों को आरक्षण देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर इंदिरा साहनी पूरे देश में चर्चित हो गई थीं। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की थी। इस मामले में नौ जजों की पीठ ने फैसला दिया था। इसमें कहा गया कि जातिगत आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। बैंच ने आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के आदेश को भी खारिज कर दिया। लोकसभा में मंगलवार को बिल पर चर्चा के दौरान विपक्ष के कई सदस्यों ने इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के केस का जिक्र किया।