आलम का यह निजी बयान आलम ने यह बयान पार्टी के अध्यक्ष तथा धुबड़ी के सांसद बदरुद्दीन अजमल की उपस्थिति में दिया था। हालांकि, तभी अजमल ने उठकर कहा कि यह पार्टी का बयान नहीं है। आलम का निजी बयान है। हम इसका समर्थन नहीं करते। आलम ने कहा था कि 1199-1897 तक मुस्लिमों ने देश में शासन किया था। तब हिंदूओं पर कोई अत्याचार नहीं हुआ था, लेकिन अब मुंस्लिमों के खिलाफ षड्यंत्र चल रहा है। यदि इस तरह की स्थिति चलती रही, तो एक दिन मुस्लिम हमला करेंगे। सिर्फ कुछ समय चाहिए। आलम ने कहा कि भाजपा विधायक कहता है कि मुस्लिमो को म्यांमार की तरह गोलियों से मारा जाना चाहिए। यदि पचास लाख मुस्लिम लोगों के नाम एनआरसी से काटे गए, तो देश में बवाल मच जाएगा। पर हम बांग्लादेश नहीं जाएंगे, बल्कि चीन और म्यांमार जाना पसंद करेंगे। इस घटना के बाद आलम ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। पार्टी ने कहा है कि कांग्रेस ने आलम का इस्तेमाल हमें बदनाम करने के लिए किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता पर दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा सुप्रीम कोर्ट ने असम में 48 लाख लोगों की नागरिकता को लेकर ऑल असम माइनॉरिटीज स्टूडेंट युनियन ( आमसू ) और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। बुधवार की हुई सुनवाई के दौरान असम सरकार की ओर से एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि जिन 48 लाख महिलाओं को पंचायत द्वारा नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया गया है उनका कोई कानूनी अस्तित्व नहीं है। हालांकि केंद्र सरकार ने इस दलील का न तो समर्थन किया और न ही विरोध किया।
गुवाहाटी हाईकोर्ट में दी गई चुनौती
आमसू की ओर से सलमान खुर्शीद ने कहा कि नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिजनशिप के कोआर्डिनेटर ने अपने 16 दस्तावेजों में से एक दस्तावेज पंचायत द्वारा दिए गए प्रमाण पत्र को भी सही माना है । लिहाजा ये पूरी तरह से कानूनी दस्तावेज है। दरअसल असम के ग्राम पंचायत सचिवों ने असम के 48 लाख लोगों को नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया है जिसे गुवाहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी । गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उन प्रमाणपत्रों को पब्लिक डॉक्युमेंट मानने से इनकार कर दिया और कहा कि ये प्राइवेट डॉक्युमेंट हैं । हाईकोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ आमसू समेत छह याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है ।