इस लिहाज से देखें तो लोक जनशक्ति पार्टी की चुनावी रणनीति बिल्कुल अलग है। वह केंद्र में एनडीए का हिस्सा है, पर बिहार में अकेले चुनाव लड़ रही है। वह एनडीए के एक घटक के खिलाफ चुनाव लड़ रही है, तो उसे दूसरे दल के समर्थन में वोट मांगने से भी परहेज नहीं है। इसके पीछे एलजेपी के युवा नेता की नीति एक तीर से दो निशाना साधने की है।
Ram Vilas Paswan का आज होगा अंतिम संस्कार, PM मोदी बोले – एक अहम सहयोगी खो दिया एंटी इनकंबेंसी फैक्टर इतना ही नहीं, ऐसा कर चिराग पासवान जेडीयू के खिलाफ मोर्चा खोलकर सरकार विरोधी वोट में सेंध लगाना चाहती है। एलजेपी नेता की कोशिश है कि बीजेपी समर्थक वोट को अपने पाले में किया जाए। ताकि जेडीयू को चुनावी झटका लग सके।
त्रिकोणीय मुकाबला दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में कई ऐसी सीटें थी जहां बीजेपी ने बहुत अच्छा चुनाव लड़ा था, पर वह जेडीयू से हार गई थी। ऐसी सीटों पर अपना प्रभाव बनाए रख पाना जेडीयू के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। पार्टी की इस रणनीति से जेडीयू की सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला हो जाएगा। चिराग चाहते भी यही हैं।
Bihar Election : 2015 में जिन सीटों पर हारी थी बीजेपी, वीआईपी को मिली उन्हीं को जीतने की चुनौती जीत पर एलजेपी की नजर अगर एलजेपी अपनी रणनीति के तहत बीजेपी समर्थक मतदाताओं को अपनी तरफ करने में सफल रहती है तो जेडीयू को सीधा नुकसान होगा और उसे बीजेपी के सहयोगी होने का लाभ नहीं मिलेगा। इस स्थिति में सरकार के खिलाफ नाराजगी अहम भूमिका निभाएगी। एलजेपी इसमें से कुछ वोट हासिल करने में सफल रहती है तो वह जीत की दहलीज तक पहुंच सकती है।
बीजेपी के लिए फायदेमंद दूसरी तरफ बिहार में बीजेपी लंबे समय से जेडीयू के साथ नंबर दो की पार्टी बनी हुई है। पिछले चुनाव में जेडीयू के आरजेडी के साथ जाने से बीजेपी की उम्मीद जगी थी, पर जेडीयू फिर से एनडीए में वापस आ गई। ऐसे में एलजेपी का जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ना बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
अब बिहार में बड़े भाई की भूमिका में नहीं रहे Nitish Kumar, जानें कैसे? लोक जनशक्ति पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहना कि हमारा बीजेपी के साथ कोई मतभेद नहीं है। प्रचार के दौरान एलजेपी पूरी कोशिश करेगी कि बीजेपी के साथ रिश्तों पर किसी तरह का कोई असर न पड़े।