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nagdwari yatra : नागपंचमी पर जानिए नागलोक की रहस्यमयी बातें

nagdwari yatra : मध्यप्रदेश पचमढ़ी में चल रहे नागद्वारी यात्रा की अनसुनी कहानियां। क्यों साल में दस दिन के लिए होने वाले इस सबसे कठिन यात्रा में शामिल होने लाखों लोग आते हैं।

Aug 05, 2019 / 11:08 am

Devendra Kashyap

nagdwari yatra

nagdwari yatra : नागपंचमी पर जानिए नागलोक की रहस्यमयी बातें

शिव नगरी पचमढ़ी में नागद्वारी गुफा ( nagdwari yatra ) की 13 किमी दुर्गम,पहाड़ी यात्रा पूरी करने इन दिनों हजारों की संख्या में शिवभक्तों का सैलाब उमड़ रहा है। नाग पंचमी के अवसर पर इस गुफा में दर्शन के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम नागद्वारी गुफा ( nag cave ) की रहस्यमयी कहानी बताने जा रहे हैं। जिसकी जानकारी आपको गूगल पर भी नहीं मिलेगी।
दरअसल, पिछले दो दिन में करीब डेढ़ लाख श्रद्धालु धार्मिक परिक्रमा पूरी कर चुके है। सोमवार को नागपंचमी पर करीब एक लाख श्रद्धालुओं के नागद्वारी में पूजन अभिषेक का अनुमान प्रशासन ने जताया है। जुलाई-अगस्त माह में लगने वाले बड़े मेले के लिए होशंगाबाद, छिंदवाड़ा का प्रशासनिक अमला दस दिनों तक मेले की व्यवस्थाएं करता है। हम आपको आगे नागलोक की रहस्यमयी कहानी बताएंगे, उससे पहले ये बता देते हैं कि वहां तक पहुंचेंगे कैसे।
यहां से शुरू होती है यात्रा

पचमढ़ी शहर से 8 किमी दूर जलगली तक टैक्सी से मेला श्रद्धालु पहुंचकर नागद्वारी गुफा की 13 किमी की दुर्गम पहाड़ी यात्रा पूरी कर रहे है। भोले शंकर के दर्शन कर 13 किमी वापस इसी मार्ग से पचमढ़ी पहुंच रहे है। तीन बड़े पहाड़ अनेक छोटी पहाड़िया, नदी, नाले, अस्थाई सीढिय़ों से लटकते हुए यह कठिन यात्रा भक्त पूरी कर रहे हैं। इस साल बारिश के कारण पांच दिन देर से शुरु हुई यात्रा के कारण काफी तादाद में श्रद्धालु पचमढ़ी पहुंच रहे हैं।
सैकड़ों साल पुराना है मेले का इतिहास

नागद्वारी मेले का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। पचमढ़ी के 69 वर्षीय वरिष्ठ नरेन्द्र कुमार गुप्ता के अनुसार 1800ई में अंग्रेजों से आदिवासी राजा भभूत सिंह की सेना के बीच युद्ध हुआ था। आदिवासी छिंदवाड़ा जिले के जुन्नारदेव से पैदल चलकर नागद्वारी क्षेत्र स्थित चित्रशला माता गुफा में अज्ञातवास करते थे। गुफा में अंग्रेजों से लड़ने की गुप्त रणनीति बनती थी, अंग्रेजी सेना पर हमला कर इन्हीं गुफाओं और कंदराओं में शरण लेते थे। नागद्वारी गुफा के पास काजरी क्षेत्र में आज भी शहीद सैनिकों की अनेक समाधियां स्थित हैं। मराठा एवं आदिवासी परिवार, आदिवासी परिवारों ने उस दौर से यहां यात्राएं प्रारंभ की। उसके बाद नागद्वारी गुफा में शिवलिंग स्थापित किया गया। महज पांच फीट चौड़ी गुफा में इसी शिवलिंग का पूजन लोग करते हैं।
संतान की होती है प्राप्ति

पचमढ़ी महादेव मंदिर के पुजारी रमेश दुबे,अभिषेक दुबे के अनुसार जिनकी कुण्डली में काल सर्प योग दोष होता है, उनके द्वारा नागद्वारी यात्रा पूर्ण करने पर यह दोष समाप्त होता है। वहीं 89 वर्षीय प्यारे लाल जायसवाल के अनुसार वे पीढ़ियों से विदर्भ के नागरिकों को नागद्वारी यात्रा करते देखते चले आ रहे हैं। पहले बच्चों को कैंची बनाकर पीठ पर लादकर दुर्गम पहाड़ों पर रस्सियों के सहारे चढ़कर यात्रा पूरी करते थे, आज प्रशासन ने कुछ व्यवस्थाएं की हैं। एक किवदंती महाराष्ट्र में प्रचलित है कि नागद्वारी यात्रा पूर्ण करने पर संतान सुख की मन्नत पूरी होती है।
नाग देवता ने पुत्र को लिया डस

दूसरी किवदंती ये है कि संतान प्राप्ति के लिए नागदेवता से मन्नत मांगी जाती थी। मन्नत पूरी होने पर नागदेवता को सलाइ से काजल आंजा जाता था। पूर्व में एक राजा हेवत चंद एवं उसकी पत्नी मैनारानी ने संतान प्राप्ति की नागदेवता से मन्नत मांगी जो पूरी हो गई मन्नत पूरी करने जब मैनारानी ने नागदेवता को काजल लगाना चाहा तो नागदेवता विशाल रुप में प्रकट हुए यह देख मैनारानी बेहोश हो गईं। नागदेवता ने आक्रोशित होकर पुत्र श्रवण कुमार को डस लिया। श्रवण कुमार की समाधि भी काजरी क्षेत्र में बनी है।
ऐसे पहुंचते हैं नागाद्वारी गुफा तक

पचमढ़ी से जलगली 7 किमी, जलगली से कालाझाड़ 3.05किमी, कालाझाड़ से चित्रशाला मंदिर 4 किमी, चित्रशाला से चिंतामन 1 किमी, चिंतामन से पश्चिम द्वार 1 किमी, पश्चिम द्वार से नागद्वारी 2.5 किमी, नागद्वारी से काजरी 2 किमी, काजरी से कालाझा 4 किमी

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