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आज भी भटक रहा है शिवजी का ये अवतार, इस किले में करता है वास!

द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम और भगवान शिव के अंशावतार थे।

Feb 17, 2020 / 11:39 am

Devendra Kashyap

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महाभारत के बारे में जानने वाले लोग अश्वत्थामा के बारे में तो जानते ही होंगे। कहा जाता है कि महाभारत के कई प्रमुख चरित्रों में से एक अश्वत्थामा का वजूद आज भी है। महाभारत के अनुसार, द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम और भगवान शिव के अंशावतार थे। माना जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जिंदा हैं और मध्य प्रदेश के एक किले में हर दिन भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।

मान्यता के अनुसार, मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के ग्वारीघाट ( नर्मदा नदी ) के किनारे अश्वत्थामा भटकते रहते हैं। इसके अलावा असीरगढ़ किले में भी इनके भटकने की जानकारी मिलती है।

शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे अश्वत्थामा
अश्वत्थामा महाभारत काल अर्थात द्वापरयुग में जन्मे थे। उनकी गिनती उस युग के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र व कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भांजे थे। द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या में पारंगत बनाया था। अश्वत्थामा भी अपने पिता की भांति शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे। पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया था। पांडव सेना को हतोत्साहित देख श्रीकृष्ण ने द्रोणाचार्य का वध करने के लिए युधिष्ठिर से कूटनीति का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत युद्धभूमि में यह बात फैला दी गई कि अश्वत्थामा मारा गया।
श्रीकृष्ण ने दिया था श्राप

जब द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की मृत्यु की सत्यता जाननी चाही तो युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो वा ( अश्वत्थामा मारा गया है, लेकिन मुझे पता नहीं कि वह नर था या हाथी )। यह सुन गुरु द्रोण पुत्र मोह में शस्त्र त्याग कर युद्धभूमि में बैठ गए और उसी अवसर का लाभ उठाकर पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया।

पिता की मृत्यु ने अश्वत्थामा को विचलित कर दिया। महाभारत के पश्चात जब अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया और पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दे दिया था।

शिव मंदिर में करते हैं पूजा-अर्चना

असीरगढ़ किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे उतावली नदी में स्नान करके पूजा के लिए यहां आते हैं। आश्चर्य कि बात यह है कि पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गर्मी में भी कभी सूखता नहीं। तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर चारो तरफ से खाइयों से घिरा है। मान्यता के अनुसार, इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन ( मध्यप्रदेश के खंडवा जिला ) से होता हुआ सीधे इस मंदिर में निकलता है।

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