मान्यता के अनुसार, मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के ग्वारीघाट ( नर्मदा नदी ) के किनारे अश्वत्थामा भटकते रहते हैं। इसके अलावा असीरगढ़ किले में भी इनके भटकने की जानकारी मिलती है। शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण थे अश्वत्थामा
पिता की मृत्यु ने अश्वत्थामा को विचलित कर दिया। महाभारत के पश्चात जब अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया और पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दे दिया था।
शिव मंदिर में करते हैं पूजा-अर्चना असीरगढ़ किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे उतावली नदी में स्नान करके पूजा के लिए यहां आते हैं। आश्चर्य कि बात यह है कि पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गर्मी में भी कभी सूखता नहीं। तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर चारो तरफ से खाइयों से घिरा है। मान्यता के अनुसार, इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन ( मध्यप्रदेश के खंडवा जिला ) से होता हुआ सीधे इस मंदिर में निकलता है।