इससे पहले गुरुवार यानि 3 सितंंबर को को गोविंदघाट गुरुद्वारे में सुखमणी पाठ, अरदास, शबद कीर्तन के बाद पंच प्यारों की अगुवाई में सुबह साढ़े नौ बजे जो बोले सो निहाल… के जयकारों के साथ 105 श्रद्धालुओं का पहला जत्था हेमकुंड साहिब के लिए रवाना हुआ।
श्रद्धालुओं का ये जत्था शाम को घांघरिया में रात्रि विश्राम के लिए पहुंचा।ज्ञात हो कि कोरोना संक्रमण के कारण हेमकुंड साहिब के प्रवेश द्वार गोविंदघाट में तीर्थयात्रियों की संख्या सीमित रही है।
केवल इन श्रद्धालुओं को मिलेगी प्रवेश की अनुमति
– सिर्फ ऐसे श्रद्धालुओं को प्रवेश की अनुमति मिलेगी, जिनमें कोरोना COVID-19 के लक्षण नहीं होंगे।
– 10 साल से कम, 60 साल से ज्यादा के लोगों और गर्भवती महिलाओं को यह यात्रा न करने की सलाह दी गई है।
– घातक बीमारियों से पीड़ित लोगों को भी गुरुद्वारे में न आने की सलाह दी गई है।
– सभी तीर्थयात्रियों को फेस मास्क-कवर पहनना होगा।
– श्रद्धालुओं को गुरुद्वारा परिसर के अंदर अपने हाथों और पैरों को साबुन से धोते रहना होगा।
– सभी श्रद्धालुओं को 6 फीट की शारीरिक दूरी बनाए रखनी होगी।
– इस्तेमाल किए गए मास्क-फेस कवर को सही तरीके से डस्टबिन में डालने होंगे।
– थूकना कड़े तौर पर प्रतिबंधित होगा।
– श्रद्धालु गुरुद्वारा परिसर में किसी सतह या चीज को न छुएंगे।
6 महीने तक जमी रहती है बर्फ…
दरअसल सिखों का यह पवित्र स्थान हेमकुंड साहिब उत्तराखंड के चमौली जिले में स्थित है। इसकी ऊंचाई 15200 फीट है। यहां पर 6 महीने तक बर्फ जमी रहती है। इस बार भी यहां बर्फ काफी है, गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट ही यहां के गुरुद्वारा की सभी व्यवस्था देखता है। यात्रा में 20 किलोमीटर की सामान्य चढ़ाई और प्लेन रास्ता पैदल या घोड़ों पर तय करना होता है।
उसके बाद गुरुद्वारा गोबिंद धाम से गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब तक तीखी 6 किलोमीटर रास्ता पहाड़ों से होकर गुजरता है। पहाड़ों पर बर्फ होने के कारण तीन किलोमीटर तक घोड़े मिल जाते हैं, लेकिन आगे फिर चढ़ाई संगत को खुद तय करनी होती है। पहाड़ों को चढ़ते समय बुरी तरह से थकी हुई संगत पवित्र स्थान के सरोवर में स्नान करके पूरी तरह से तरोताजा हो जाती है।