अंबुबाची मेला ( ambubachi mela )
कामाख्या मंदिर में हर साल तीन दिन का अंबुबाची मेला लगता है। इस मेले में देश के कोने-कोने से तंत्र-मंत्र के साधक आते हैं और मेले में शामिल होते हैं, क्योंकि कामाख्या देवी मंदिर तंत्र साधना का प्रमुख स्थान माना जाता है। यह मेला दुनिया भर में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता प्रचलित है कि तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले के दौरान मंदिर का दरवाजा अपने आप बंद हो जाता है। वजह यह है कि इन 3 दिनों में देवी रजस्वला रहती हैं। इस साल यह मेला 22 जून से शुरू हो रहा है।
26 जून को खुलेंगे मंदिर के द्वार
इस साल अंबुबाची मेले ( ambubachi mela ) के लिए मंदिर का दरवाजा 22 जून को रात में 9 बजकर 27 मिनट और 54 सेकेंड पर बंद हो जाएगा और 26 जून की सुबह 7 बजकर 51 मिनट और 58 सेकेंड पर दोबारा खुलेगा। इस दौरान अंबुबाची मेले का आयोजन किया जाएगा। 26 जून को ही देवी के पूजा स्नान के बाद मंदिर के द्वार खुले जाएंगे। इसके बाद प्रसाद वितरण कार्यक्रम शुरू होगा।
प्रसाद में बांटा जाता है गीला कपड़ा
यहां भक्तों को प्रसाद के रूप में गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अंबुबाची वस्त्र कहते हैं। इसी वजह से मेला का नाम अंबुबाची पड़ा है। कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल होता है।
51 शक्तिपीठों में माना जाता है महापीठ
असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित कामाख्या देवी शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। यही नहीं आश्चर्य की बात तो यह है की यहां मंदिर में देवी दुर्गा की कोई प्रतिमा या मूर्ति स्थापित नहीं है। यहां देवी की मूर्ति नहीं बल्कि देवी मां की योनि की पूजा की जाती है। योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। यहां मंदिर में एक कुंड भी बना हुआ है, जो की हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल प्रवाहित होता रहता है।