दरअसल श्री हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) वह तीर्थ है जहां के संबंध में माना जाता है कि यहां सिखों के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने तप किया था… इसे सिक्ख तीर्थों की सबसे कठिन तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है।
करीब 15 हज़ार 200 फ़ीट ऊंचे ग्लेशियर पर स्थित श्री हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) चारों तरफ से ग्लेशियर (हिमनदों) से घिरे हैं। इन्हीं हिमनदों का बर्फीला पानी जिस जलकुंड का निर्माण करता है, उसे ही हेम कुंड यानी बर्फ का कुंड कहते हैं।
इस तीर्थ के संबंध में मान्यता है कि यहां श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने बरसों तक महाकाल की आराधना की थी। यही वजह है कि सिख समुदाय की इस तीर्थ में अगाध श्रद्धा है और वे तमाम दिक्कतों के बावजूद यहां पहुंचते हैं और हर साल श्रद्धालुओं का सैलाब यहां उमड़ता है।
गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib)
हिमालय में स्थित गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) सिखों के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। यहां पर सिखों के दसवें और अंतिम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने अपने पिछले जीवन में ध्यान साधना की थी और वर्तमान जीवन लिया था।
इस जगह को यहां के स्थानीय निवासियों द्वारा बहुत ही असामान्य, पवित्र, विस्मय और श्रद्धा का स्थान माना जाता है। यहां पर स्थित झील और इसके आसपास के क्षेत्र को लोग एक नाम “लोकपाल” से भी जानते हैं, जिसका अर्थ है लोगों का निर्वाहक…
श्री हेमकुंड साहिब की खास बातें…
जब भी धरती पर सुंदरता की बात आती है तो सबसे पहला नाम कश्मीर का ही आता है, लेकिन भारत में कुछ ऐसी जगहें भी है जो किसी जन्नत से कम नहीं और ये जन्नत कश्मीर नहीं, बल्कि कोई और जगह है।
हम बात कर रहे हैं, सिखों की अटूट आस्था के प्रतीक श्री हेमकुंड साहिब की। यह उत्तराखंड के चमौली में स्थित श्री हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) 15200 फीट की ऊंचाई पर बना है। श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा 6 महीने तक बर्फ से ढका रहता है।
श्री हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है और यह देश के सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारों में से एक हैं, गुरुद्वारे के पास ही एक सरोवर है। इस पवित्र जगह को अमृत सरोवर यानि अमृत का तालाब कहा जाता है।
यह सरोवर लगभग 400 गज लंबा और 200 गज चौड़ा है। यह चारों तरफ से हिमालय की सात चोटियों से घिरा हुआ है। इन चोटियों का रंग वायुमंडलीय स्थितियों के अनुसार अपने आप बदलता रहता है।
कुछ समय वे बर्फ सी सफेद, कुछ समय सुनहरे, तो कभी लाल की और कभी-कभी भूरे नीले रंग की दिखती हैं।
इस पवित्र स्थल को रामायण के समय से मौजूद माना गया है, कहा जाता है कि लोकपाल वही जगह है जहां श्री लक्ष्मण जी अपना मनभावन स्थान होने के कारण ध्यान पर बैठ गए थे। कहा जाता है कि अपने पहले के अवतार में गोबिंद सिंह जी ध्यान के लिए यहां आए थे।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आत्मकथा बिचित्र नाटक में इस जगह के बारे में अपने अनुभवों का उल्लेख भी किया है। श्री हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) के बारे में कहा जाता है कि यह जगह दो से अधिक सदियों तक गुमनामी में रही, गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आत्मकथा बिचित्र नाटक में इस जगह के बारे में बताया, तब यह अस्तित्व में आई।
सिख इतिहासकार-कवि भाई संतोख सिंह (1787-1843) ने इस जगह का विस्तृत वर्णन दुष्ट दमन की कहानी में अपनी कल्पना में किया था। उन्होंने इसमें गुरु का अर्थ शाब्दिक शब्द ‘बुराई के विजेता’ के लिए चुना है।
सिखों के प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में
हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) औपचारिक रूप से गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) के रूप में जाना जाता है। ये स्थान भारत में देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
: यह जगह सिखों के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी (1666-1708) के लिए समर्पित है और इसका जिक्र दसम ग्रंथ में स्वयं गुरुजी ने किया है।
: वहीं सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, ये सात पर्वत चोटियों से घिरा हुआ एक हिमनद झील के साथ 4632 मीटर (15,197 फीट) की ऊंचाई पर हिमालय में स्थित है।
: इसकी सात पर्वत चोटियों की चट्टान पर एक निशान साहिब सजा हुआ है। यहां पर गोविन्दघाट से होते हुए ऋषिकेश-बद्रीनाथ राजमार्ग पर जाया जा सकता है। गोविन्दघाट के पास मुख्य शहर जोशीमठ है।
दरअसल हेमकुंड एक संस्कृत नाम है जिसका अर्थ है – हेम (“बर्फ”) और कुंड ( “कटोरा”) है। दसम ग्रंथ के अनुसार, यह वह जगह है जहां पांडु राजा अभ्यास योग करते थे। इसके अलावा दसम ग्रंथ में यह कहा गया है कि जब पाण्डु हेमकुंड पहाड़ पर गहरे ध्यान में थे, तो भगवान ने उन्हें सिख गुरु गोबिंद सिंह के रूप में यहां पर जन्म लेने का आदेश दिया था।
पंडित तारा सिंह नरोत्तम जो 19वीं सदी के निर्मला विद्वान थे। हेमकुंड की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने वाले वो पहले सिख थे, श्री गुड़ तीरथ संग्रह में जो 1884 में प्रकाशित हुआ था, इसमें उन्होंने इसका वर्णन 508 सिख धार्मिक स्थलों में से एक के रूप में किया है। इसके बाद में प्रसिद्ध सिख विद्वान भाई वीर सिंह ने हेमकुंड के विकास के बारे में खोजकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
राजा पांडु की तपस्या और हेमकुंड
भाई वीर सिंह का वर्णन पढ़कर संत सोहन सिंह जो एक रिटायर्ड आर्मीमैन थे, ने हेमकुंड साहिब को खोजने का फैसला किया। और वर्ष 1934 में वो सफल हो गए।
पांडुकेश्वर में गोविंद घाट के पास संत सोहन सिंह ने स्थानीय लोगों के पूछताछ के बाद वो जगह ढूंढ ली, जहां राजा पांडु ने तपस्या की थी और बाद में झील को भी ढूंढ निकला जो लोकपाल के रूप विख्यात थी।
हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) की सरंचना
1937 में गुरु ग्रंथ साहिब को स्थापित किया गया, जो आज दुनिया में सबसे ज्यादा माने जाने वाले गुरुद्वारे का स्थल है। 1939 में संत सोहन सिंह ने अपनी मौत से पहले हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) के विकास का काम जारी रखने के मिशन को मोहन सिंह को सौंप दिया, गोबिंद धाम में पहली संरचना को मोहन सिंह द्वारा निर्मित कराया गया था।
1960 में अपनी मृत्यु से पहले मोहन सिंह ने एक सात सदस्यीय कमेटी बनाकर इस तीर्थ यात्रा के संचालन की निगरानी दे दी। आज गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) के अलावा हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर, जोशीमठ, गोबिंद घाट, और गोबिंद धाम में गुरुद्वारों में सभी तीर्थयात्रियों के लिए भोजन और आवास उपलब्ध कराने का प्रबंधन इसी कमेटी द्वारा किया जाता है।
श्री हेमकुंड साहिब Sri Hemkund Sahib an amazing world-53 की यात्रा…
श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा का पहला पड़ाव ऋषिकेश है। यात्री यहां गुरुद्वारा साहिब में रात्रि विश्राम कर यहीं से मूल यात्रा शुरू करते हैं। यहां श्री हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) ट्रस्ट द्वारा यात्रियों की सुविधा के तमाम इंतज़ाम किए गए हैं।
यात्रा का अगला पड़ाव गोबिंद घाट है, जो ऋषिकेश से करीब 300 किलोमीटर है। इसी रास्ते में सबसे पहले देव प्रयाग पड़ता है। देवप्रयाग में अलकनंदा और भगीरथी नदियां मिलकर गंगा जी का निर्माण करती हैं। इसके बाद में कर्ण प्रयाग,रूद्र प्रयाग और फिर जोशीमठ और विष्णु प्रयाग होते हुए यात्रा गोबिंद घाट पहुंचती है। रास्ते में सभी मुख्य स्थानों पर गुरुघरों और उसके अलावा संस्थाओं द्वारा भी लंगर और ठहराव की व्यवस्था की गयी है। यानि श्रद्धालुओं के लिए बिना कुछ खर्च किए सभी तरह का खान-पान उपलब्ध रहता है।
गोबिंदघाट में दूसरी रात्रि विश्राम के बाद तीर्थ यात्रा का अगला चरण शुरू होता है। यहां से श्री हेमकुंड साहिब की दूरी 19 किलोमीटर है। इसे पैदल या घोड़ों पर तय किया जा सकता है। अंतिम तीन किलोमीटर जो ग्लेशियर वाला हिस्सा है वह सिर्फ पैदल ही तय करना होता है।
सक्षम यात्री इसे एक ही दिन में तय कर लेते है, तो कुछ सुविधानुसार 13 किलोमीटर दूर गोबिंद धाम में जाते या आते समय रात्रि विश्राम करते हैं। गोबिंद घाट से गोबिंद धाम के बीच हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है। गोबिंद धाम से आगे चार किलोमीटर पैदल या घोड़े से पहुंचा जा सकता है। जबकि उसके बाद ग्लेशियर वाला हिस्सा पैदल ही तय करना होता है।
ऐसे पहुंचे इस पवित्र तीर्थ पर
यदि आप भी हेमकुंड साहिब Sri Hemkund Sahib an amazing world-53 जाने का मन रखते हैं तो यहां हम आपको बता रहे हैं कि इस पवित्र तीर्थ स्थल तक आप कैसे पहुंच सकते हैं…
हेमकुंड साहिब तक की यात्रा की शुरुआत गोविंदघाट से होती है जो अखलनंदा नदी के किनारे समुद्र तल से 1 हजार 828 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
गोविंदघाट तक तो अच्छी सड़कें हैं और यहां तक गाड़ियां आराम से जाती हैं, लेकिन इसके ऊपर यानी गोविंदघाट से घांघरिया तक 13 किलोमीटर की चढ़ाई है, जो एकदम खड़ी चढ़ाई है। वहीं इसके आगे का 6 किलोमीटर का सफर और भी ज्यादा मुश्किलों से भरा है।
हवाई मार्ग- देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट नजदीकी एयरपोर्ट है। गोविंदघाट से जॉली ग्रांट की दूरी 292 किलोमीटर है। यहां से गोविंदघाट तक टैक्सी या बस के जरिए पहुंच सकते हैं। गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब (Sri Hemkund Sahib) तक 19 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है।
रेल मार्ग- हेमकुंड साहिब का नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो गोविंदघाट से 273 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश से टैक्सी या बस के जरिए श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, चमोली और जोशीमठ होते हुए गोविंदघाट पहुंच सकते हैं।