यहां बुजुर्ग हों या युवा यानी हर उम्र के लोग सुबह से हीरों की तलाश में जुट जाते हैं। जिस तरफ नजर दौड़ाओ या तो हीरे निकासी के लिए बनाए गए गहरे गड्ढे दिखेेंगे या फिर मिटटी और चाल के पहाड़ हैं। राह चलना मुश्किल है। हीरा खनन का खुमार लोगों में इस कदर छाया है कि इस साल छह 200 से ज्यादा लोगों ने पट्टे जारी करा लिए। जिले में वैध से ज्यादा हीरे की अवैध खदानेे हैं। वर्तमान में संचालित करीब एक हजार हीरा खदानों में इस समय पांच हजार से अधिक कार्यरत है।
हीरा कार्यालय से वर्तमान में पन्ना व इटवां दो सर्किल में हीरा खनन के लिए पट्टे जारी किए जा रहे हैं। पन्ना सर्किल में दहलान चौकी, सकरिया चौपड़ा, सरकोहा, कृष्णा कल्याणपुर (पटी), राधापुर और जनकपुर। वहीं इटवां सर्किल में हजारा मुड्ढ़ा, किटहा, रमखिरिया, बगीचा, हजारा व भरका गांव शामिल हैं। इसके अलवा हीरा धारित पट्टी का करीब दो हजार हेक्टेयर क्षेत्र वन क्षेत्र में है। जिस कारण वहां खनन की अनुमति नहीं है। हीरा करोबारी बताते हैं कि वन क्षेत्र सघन हीरा वाला इलाका है। इसे वन विभाग से वापस लेकर पट्टे जारी किए जाने चाहिए।
हीरा खदान लगाने के इच्छुक व्यक्ति को जिला हीरा कार्यालय में 200 रुपए के चालान के साथ आवेदन देना होता है। जिसके बाद हीरा विभाग हल्का पटवारी सहित अन्य विभागों से अभिमत मांगता है। एक से दो सप्ताह में पट्टा मिल जाता है। इसके बाद आठ बाई आठ मीटर का क्षेत्र चिन्ह्ति कर संबंधित व्यक्ति का सौंप देता है। इसे ग्रेवल मिलने तक खोदने की अनुमति होती है।
हीरा खदान के संचालन उथली हीरा खदानों तक ग्रेवल (चाल) मिलने तक खोदते हैं। ग्रेवल को खदान से निकालकर सुरक्षित भंडारित कर लिया जाता है। यदि खदान किसी जल स्रोत के आसपास है तो इसे अभी भी धोया जा सकता है। यहां ग्रेवल को धोने का अधिकांश काम बारिश के दिनों में होता है। जब धुलाई के लिए पानी आसानी से मिल जाता है। ध्ुालाई के दौरान चाल की मिट्टी को पानी से धुलकर बहा दिया जाता है। इसमें बचे कंकड पत्थर को सूखने के लिए धूप में डाल दिया जाता है। इन्हीं कंकड पत्थरों के बीच हीरा होता है। जिसे बिनाई के दौरान कंकडों के बीच से बीना जाता है।