शहर में विराजे सिद्ध पीठ वल्लाल गणेश के दरबार में चल रहे पांच दिवसीय प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतिम दिन गुरुवार को नए मंदिर में जयकारों के साथ प्रतिमाओं की स्थापना की गई। फूलों व रोशनी से सजे मंदिर में मंत्रोच्चार की ध्वनि के बीच गजानन, नागेश्वर महादेव परिवार व माता दुर्गा की प्रतिमा विराजमान करते ही हर तरफ जयकारे गूंजे। जयकारों व मंत्रों की ध्वनि से रेलवे स्टेशन मार्ग से गुजरने वाले लोगों के कदम व वाहन भी थम गए और वे वल्लाल गणेश के दर्शन करने के लिए बढ़े चले आए। प्रभु के दर्शन करने के बाद वापस लौटने के बजाय लोगों ने पहले संतों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया और पूर्णाहुति तडक़े चार बजे हुई आरती। महोत्सव में रात को महिलाओं ने रात जगा कर भजन गाए। महिलाओं व संतों के साथ श्रद्धालुओं ने तडक़े चार बजे आरती की। इसके बाद भगवान के पुराने मंदिर में मंगला आरती की गई। मंगलाआरती के पश्चात नए मंदिर का गंगाजल छिडकऱ शुद्धिकरण किया गया।
कलश व ध्वजा का किया पूजन महोत्सव में सुबह महंत चंचल गिरी, महंत नारायण गिरी, महंत सुरेश गिरी, महंत गिरजा गिरी, संत राम गिरी, संत बालक गिरी, संत प्रयाग गिरी आदि की उपस्थिति में दिग्पालों, दण्ड व कलशों का पूजन किया गया। यज्ञशाला का पूजन करने के बाद स्वाहा के स्वर सुनाई देना शुरू हुआ। जो वेद मंत्रों के साथ दोपहर तक अनवरत जारी रहा। श्रद्धालुओं ने हवन वेदी में आहुतियां देकर विश्वकल्याण की प्रार्थना की।
मुख्य मंदिर के बाहर की स्थापना महोत्सव में मंदिर की दीवार के चारों तरफ दिग्पालों की प्रतिमाएं स्थापित की गई। इसके बाद भगवान शिव, गजानन व माता अम्बे के मंदिर पर ढोल व थाली की झनकार के साथ ध्वजा चढ़ाई गई। इस दौरान मंदिर परिसर में महिलाओं ने मंगल गान कर प्रभु का गुणगान किया।
गंगाजल से किया अभिषेक मुख्य मंदिर में नागेश्वर महादेव की स्थापना के बाद पंडितों ने रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का उच्चारण करते हुए महादेव का गंगाजल से अभिषेक किया। इसके बाद मंदिर में प्रतिष्ठित गजानन व महादेव सहित प्रतिष्ठित सभी प्रतिमाओं का फूलों व आभूषणों से शृंगार किया गया।
दर्शन को रहे आतुर मुख्य मंदिर के दोपहर बारह बजे द्वार खुलने से पहले ही बड़ी संख्या में उमड़े श्रद्धालुओं के कारण मंदिर परिसर में पैर रखने की जगह नहीं रही। लाभार्थियों के कतार में खड़े पंडितों की उपस्थिति में द्वार खोलते ही हर कोई खुशी से झूम उठे। लोगों ने प्रभु के दर्शन कर शीश नवाया।
भोग चढ़ाने के बाद दी विदाई मंदिर के पट खुलने से पहले ही भगवान को बूंदी के साथ प्रसाद का भोग चढ़ाया गया। इसके बाद सबसे पहले देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे संतों को भोजन करवाकर दक्षिणा दी गई। इसके बाद शहरवासियों ने गजानन का प्रसाद ग्रहण किया। महाप्रसादी कार्यक्रम शाम तक अनवतर जारी रहा।
एक तरफा किया रास्ता मंदिर में भोर होते ही श्रद्धालुओं का आगमन शुरू हो गया। इस कारण रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाले मार्ग को एक तरफा करना पड़ा। वाहनों की पार्र्किंग भी मंदिर के पास स्थित मैदानों व अन्य परिसरों में करनी पड़ी।
एक नजर में महोत्सव – 2500 से अधिक आए संत – 20 हजार लोगों ने लिया प्रसाद – 4 दिन बनी बूंदी – 7 क्विंटल बेसन की बनाई बूंदी – 55 पंडितों ने किया मंत्रोच्चार
– 400 कार्यकर्ताओं ने संभाली व्यवस्था – 50 सीसीटीवी कैमरे लगे थे सुरक्षा में