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पाकिस्तान

जमीन पर औंधे मुंह गिरे पाक पीएम इमरान खान के हवाई वादे

अपने चुनावी अभियान में इमरान खान ने किए थे एक से बढ़कर एक वादे
फुस्स हुआ दस मिलियन नौकरियों और पांच मिलियन सस्ते घरों का वादा
जनता में बढ़ रहा इमरान सरकार के प्रति असंतोष

Apr 27, 2019 / 07:25 am

Siddharth Priyadarshi

Imran Khan

इस्लामाबाद। पाकिस्तान में चुनाव बीते लगभग साल होने को आ गए हैं। पाक पीएम इमरान खान इन चुनावों में कई तरह के हवाई वादे कर सत्ता में आए थे। अब इस बात की सुगबुगाहट गरमाती जा रही है कि क्या इमरान खान के वादे फेल हो चुके हैं? क्या इमरान खान ने नया पाकिस्तान का जो भी वादा किया था, वह केवल चुनावी मंच तक सीमित था? इमरान खान के ऊपर अब इस बात का आरोप लग रहा है कि असल में वह अपने वादों को लेकर कभी सीरियस नहीं थे। कई तरह के वादों से पाकिस्तान के लोगों को लाजवाब कर वोट बटोरने वाले इमरान खान ने इन वादों की कोई कद्र नहीं की है और अब तो वो इन चुनावी वादों की कोई चर्चा भी नहीं करते।

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वादों के पुराने खिलाड़ी हैं खान

2018 में इमरान खान ने शानदार चुनावी वादे किए। कुछ ने सुर्खियां बटोरीं, कुछ ने नहीं। भले ही 25 जुलाई 2018 को उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सत्ता में आ गई, लेकिन इमरान की असल मुश्किल उसके बाद शुरू हुई। पंजीकृत मतदाताओं में से अधिकांश ने इमरान में भरोसा जताया लेकिन जैसा कि राजनीति में हमेशा होता है, वादे कर तो दिए जाते हैं लेकिन सुसंगत कार्रवाई में उन्हें लागू करना कभी आसान नहीं होता है। अपने वादों के लिये पाकिस्तान में इमरान को जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ याद किया जाता है। एक स्मार्ट नारा “रोटी, कपड़ा और मकाँ (रोटी, कपड़े और घर) के जरिये वह सत्ता में आए, लेकिन इनमें से कोई भी चीज वह देने में विफल रहे। सभी के लिए रोटी, कपड़ा और खाने का सपना कभी साकार नहीं हुआ। तब से लेकर अब तक की सरकारें इन मूल बातों को प्रदान करने में ज्यादा भाग्यशाली नहीं रहीं।

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क्या इमरान ने केवल जबानखर्ची की?

प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र को दिए अपने पहले संबोधन में इमरान ने एक साधारण सफेद कुरता और पैंट पहना था। कैमरे को बारीकी से घूरते हुए उन्होंने पांच मिलियन कम लागत वाले घरों, दस मिलियन नौकरियों, सभी सरकारी स्तरों पर फिजूलखर्ची रोकने और कर वसूली की दर को बढ़ाने का वादा किया। उन्होंने कहा कि वह गाड़ियों का बेड़ा उनके पीछे नहीं जाएगा। उन्होंने कहा, “मैं केवल सुरक्षा के लिए दो नौकरों और दो वाहनों का उपयोग करूंगा।” लेकिन फिर कुछ दिन ऑफिस में गुजारने के बाद वह ‘पाकिस्तान के केजरीवाल’ साबित हुए। उनके शासन संभालने के कुछ ही दिन बाद ही पाक पीएम हाउस में भैसों, गाड़ियों और अतिरिक्त साजो-सामान की नीलामी हुई। कहा गया कि इसके जरिए इमरान खान पाक की पहले से खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को सहारा देना चाहते हैं लेकिन कुछ दिन बाद ही उनका ढोंग सामने आ गया। देखा गया कि वह दो महीने बाद हेलिकॉप्टर में वह इधर-उधर फुदकने लगे।

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इमरान अकेले शिकारी नहीं

वादे तोड़ने वाले केवल इमरान अकेले नहीं थे, उनके गठबंधन के साथी शेख रशीद, जो चुनाव के दिनों में मोटरसाइकिल पर चुनाव प्रचार करते देखे गए थे, अब सड़कों पर दोपहिया वाहनों को देखना भी नहीं चाहते हैं। एक अन्य उदाहरण पंजाब के नए मुख्यमंत्री पीटीआई के उस्मान बुज़दार हैं। वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के पिछड़ेपन और परिवार के गरीबी के लिए काफी चर्चा में रहे लेकिन अब वो और उनका परिवार एक निजी विमान में यात्रा करते हैं।

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एक के बाद एक टूटे वादे

इमरान खान ने दस मिलियन नौकरियों का भी वादा किया। बता दें कि पाकिस्तान की 207 मिलियन आबादी में से आधे से अधिक युवा हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2016-2017 के अनुसार पाक में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों में छह प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में आठ प्रतिशत थी। विशेषज्ञ सरकारी आंकड़ों पर भरोसा नहीं करते और कहते हैं कि असल में संख्या इससे कहीं अधिक है। अब सवाल उठता है कि इमरान खान तो खान इसे कैसे कम करेंगे? प्रधानमंत्री कहते हैं कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार पर एक कानून बनाने पर काम कर रही है। जो कोई भी भ्रष्टाचार की पहचान करने में मदद करेगा, उसे वसूल किए गए धन का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा। यानी यदि कोई व्यक्ति 50 मिलियन रुपये की पहचान करने में मदद करता है और उसे इतना पैसा मिलेगा कि वह एक घर खरीद लेगा। इमरान की सरकार को करीब एक साल बीतने को आए लेकिन अब तक वह ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया गया जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि उन्होंने कोई भी वादा पूरा किया है या उसके लिए कोई गंभीरता दिखा पाए हैं।

इमरान भी असल में इस बात को समझ गए हैं कि केवल जनता को मूर्ख बनाकर चुनाव जीतना और उसके बाद जानता की उमीदों पर खरा उतरना दोनों अलग-अलग बाते हैं। फिलहाल अगर सरकार ने कार्यकाल पूरा किया तो अब भी इमरान के पास 4 साल से अधिक का समय है। ‘खिलाड़ी खान’ जानते हैं कि दिन के अंत में केवल मायने रखता है कि वादे पूरे किए जाएं और तोड़े नहीं जाएं। इतिहास गवाह है कि जानता किसी भी देश की हो, उसने शब्दों की लफ्फाजी को कभी माफ नहीं किया है।

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